इंसान ने यहाँ स्वार्थ में खुद के ईमान है बैच दिए
नफरत की आग ने ना जाने कितने घरों को जला दिए
हालातो की जंग ने अपनी ही गरीबी से लड़ना जैसे सीखा दिया
अपने ही शहर ने जैसे फिर उसको था अनाथ बना दिया
यहाँ पैसा बोलता है दो वक़्त की रोटी की तलाश ने था समझा दिया
अमीर और गरीब के फर्क को समाज ने भी जैसे था अपना लिया
यहाँ तोह वक़्त के साथ लोग भी बदल जाते है
यहाँ जीवन को जो हिम्मत से जी पाया वही सिकंदर कह लाया है
कवित्री
संचिता
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