Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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तेरे शहर में

 

 

sahar

 

 

इंसान ने यहाँ स्वार्थ में खुद के ईमान है बैच दिए
नफरत की आग ने ना जाने कितने घरों को जला दिए
हालातो की जंग ने अपनी ही गरीबी से लड़ना जैसे सीखा दिया
अपने ही शहर ने जैसे फिर उसको था अनाथ बना दिया
यहाँ पैसा बोलता है दो वक़्त की रोटी की तलाश ने था समझा दिया
अमीर और गरीब के फर्क को समाज ने भी जैसे था अपना लिया
यहाँ तोह वक़्त के साथ लोग भी बदल जाते है
यहाँ जीवन को जो हिम्मत से जी पाया वही सिकंदर कह लाया है

 

 

 

कवित्री
संचिता


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