Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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टूटी कलम

 

पहले लोग 'बेटा' के लिये तरसते थे..

और आजकल डेटा के लिये !

 

 

 

आज की सबसे बड़ी दुविधा.....

मोबाइल बिगड़ जाये तो बच्चे जिम्मेदार

और बच्चे बिगड़ जाये तो मोबाइल
जिम्मेदार....

 

 

 

 

" बदल गया है जमाना

पहले माँ का पेर छू कर निकलते थे,

अब मोबाइल की बेटरी फुल करके निकलते है "

 

 

पैर की मोच
और
छोटी सोच,
हमें आगे
बढ़ने नहीं देती ।

 

 

टूटी कलम
और
औरो से जलन,
खुद का भाग्य
लिखने नहीं देती ।

 

 



काम का आलस
और
पैसो का लालच,
हमें महान
बनने नहीं देता ।

 

 

अपना मजहब उंचा
और
गैरो का ओछा,
ये सोच हमें इन्सान
बनने नहीं देती ।

 

 

दुनिया में सब चीज
मिल जाती है,....
केवल अपनी गलती
नहीं मिलती.....

 

 

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भगवान से वरदान माँगा
कि दुश्मनों से
पीछा छुड़वा दो,
अचानक दोस्त
कम हो गए...

 

 

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" जितनी भीड़ ,
बढ़ रही
ज़माने में..।
लोग उतनें ही,
अकेले होते
जा रहे हैं...।।।

 

 

 

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इस दुनिया के
लोग भी कितने
अजीब है ना ;

सारे खिलौने
छोड़ कर
जज़बातों से
खेलते हैं...

 

 

 

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संचिता

 

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