ना वो खुलकर हस्ती थी ,ना वो रोती थी ?
हर पल ना खुश सी वो रहती थी ?
ना जाने वो ज़िन्दगी से क्या चाहती थी ?
उसकी आँखें सवालो की मायूसी से जैसे भरी थी ?
ना वो अपने गमो को कभी किसी से बयां करती थी ?
खुद में जैसे हर बोझ को दबाये रहती थी ?
पर हर हाल से लड़ना वो जानती थी ?
जीवन से फिर भी उसने कभी हार नहीं मानी थी ?
उसका जज़्बा और सहनशीलता जैसे हर किसी को जीने की मिसाल देती थी ?
वो खामोश रहती थी,सरलता उसकी पहचान थी ?
वो एक पहेली थी ,ना जाने क्यों लगता था उसमें छुपी कोई कहानी थी ?
कवित्री
संचिता
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