लफ्ज़ जैसे कम हो गए थे अपने जज़्बातों को बयां करने को ....
लग रहा था निग़ाहें चाहती हो उनको कुछ समझाने को ....
चाह थी तुझसे करू अपने दर्द का इज़हार ...
पर ना समझ थी मैं की तेरे हमदर्दी को समझ लिया मैंने तेरा प्यार....
तुमने समझा दिया एक पल में की मेरा रिश्ता था तुझसे अनजान ....
खुदको तुझसे अलग करना जैसे धुन्दला रहा था मुझसे मेरी पहचान ....
जल्द समझ आया की गलत इंसान पे भरोसा दे जाता है कितने गम ....
आँख भले थी तेरे बेवफाई से नम ....
लेकिन सफर यह मेरे अकेला है यह मैं जान गई थी...
अभ ना था इंतज़ार तेरा ....
साथ था अभ स्वाभिमान मेरा ....
Written by Sanchita
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