पता ही ना चला कब वो मुलाकात हो गई इतनी ख़ास ..
सोचा था आसान होगा उनको बयां करना की वो है अभ मेरे हमराज़ …
पर ना जाने क्यों इतना मुश्किल था कह पाना प्यार के वो चंद अलफ़ाज़
वो मुलाकात जैसे कोई रूप कहानी जैसी हो , जिसमें हर पल सुन्हेरा और रंगीन था .
सोचा था करुँगी उनसे दिल की हर बात ..
पर ज़ुबान पे जैसे आ कर रुक से गए हो उनके लिए मेरे हर जज़्बात ..
फिर भी खूबसूरत थी उनसे वो मुलाकात …
दिल कह रहा था वक़्त आज तू थम जा ...
ख्वाइशें कह रहे हो जैसे वक़्त के साथ तू बह जा ..
आँखें उनकी तस्वीर को दिल में बसाने की तमन्ना जैसे कर रहे थे
वो मुलाकात ना थी बातो की और जज़्बातों की मोहताज
वो मुलाकात जैसे मुझ से कह रहा हो की अब चाहु ज़िन्दगी भर जीना सिर्फ तेरे साथ ..
वो मुलाकात अभ जैसे मीठी यादों से भरा हो एक एहसास ....
पता ही ना चला कब वो मुलाकात हो गई इतनी ख़ास ..
कवित्री
संचिता
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