यह कलम जैसे मुझसे कहती हो की मेरे में है इतना दम की दिखादो क्रांति...
यह शब्द तब बोल पड़े की मेरे बिना कहा से आएगा जज़्बातों का बल ...
कागज़ बोल उठा मेरे बिना ना शब्द ,ना कलम का वजूद है ....
यह सब सुनकर मेरा कवि बोला मैं अधूरा हूँ बिन कलम,बिन कागज़ और बिन शब्द..
मैं कवि तभी हूँ जब इन् सब के साथ मिलकर दे पाऊ अपनी कविता को रूप..
यह प्रकृति का भी नियम है सब अगर साथ हो तोह अपने आप पा जाता है सुन्दर स्वरुप ...
Written by Sanchita
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY