Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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shayari-24

 

 

shayari

 

१) कहते है बदल जाते है लोग यहाँ मौसम की तरह...
पर पता ही नहीं चला कब हम बदल गए इन् फ़िज़ाओं में हवा की तरह ..
हमने नहीं चाहा था बनना इस खुदगर्ज़ दुनिया की तरह ..
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२) जब तुफानो के बवंडर में हम खो से रहे थे...
तब हिम्मत जैसे हाथ बढ़ाकर लड़ने का जोश दे रहे थे....
जैसे कह रहे हो की यह आंधी है जो हिम्मत के संग थम जाएगी...
और सिर झुका कर तुझसे हार मान भी जाएगी ..
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३) क्या डर उसको जिसने ज़िन्दगी से मांगना छोड़ दिया हो...
क्या डर उस फ़क़ीर को जिसने सब कुछ भुला कर खुद को ज़िन्दगी में ही लीन कर दिया हो..
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४)ना समझो किसी को बेवकूफ ..
ना समझो किसीको कमज़ोर ...
क्यूंकि यहाँ शतरंज की खेल की तरह प्यादा भी खेल की चाल बदल देता है ..
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५ ) खुशियों से भरी उन यादो के सहारे गुज़र रही थी जैसे अब यह ज़िन्दगी...
गमो और आशाओं ने जैसे बना ली हो इस ज़िन्दगी की कोई बंदगी...
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६ )मीठी सी हसी से दिल चुरा लेता है कोई...
समझ तब आता है, जब उस हंसी को ज़िन्दगी बना लेता है कोई...
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६ )तेरे जाने के बाद के उस खालीपन में यादों ने जैसे अपना आशियाँ इन आँखों में बसा लिया था...
आज भी जैसे इस दिल को तेरे वापस आ जाने की उम्मीद लगा रहा था...
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७ )ना माँगा हमने हिसाब कभी इस ज़िन्दगी से...
तभी शायद ज़िन्दगी ने भी नहीं पूछा हमसे की कब मैंने क्या पाया और क्या खोया...
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८ )"गम" जिंदगी में मेरे , आये बड़े बड़े ,हालत को देख मेरी, वो खुद ही हंस पड़े !!

९ ) खाने का ज़ायका खाने में नहीं, भूख से तड़पते हुए पेट में होता है...

By Sanchita

 

 

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