Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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दास्तान

 

मेरे दिल से मेरा हाथ मत उठना नीचे जख्म है,
मेरे दिल की दास्तान न सुनना मेरे दिल में दर्द है,

 



हंसती है दुनिया मुझे चिड़चिडने के लिए,
पास बुलाते हैं मुझे उसे भूलने के लिए,
बिठाते है मुझे उसे भूल जाने के लिए,
समझाते है मुझे मेरा दिल लगाने के लिए,
कैसे दिल लगे,जब किसी के अहसानों का कर्ज है,

 



मेरे दिल से मेरा हाथ मत उठना नीचे जख्म है,
मेरे दिल की दास्तान न सुनना मेरे दिल में दर्द है,

 



सुबह आती है, लाल सी होकर,
निखार जाता हूँ मैं भी आसु धोकर,
शाम चली जाती है, लाल सी होकर,
सो जाता हूँ मैं भी अध-मरा सा होकर,
औड़ी चदर न हटना, मेरे शरीर से,

 


मेरे दिल से मेरा हाथ मत उठना नीचे जख्म है,
मेरे दिल की दास्तान न सुनना मेरे दिल में दर्द है,

 

 

मेरा कल देखकर तू क्यों हैरान है,
मेरा कल भी तो किसी का मेहमान है,
मेरे अतीत में बहुत तूफान हैं,
ये वक्त कितना बलवान है,
ये शीशा मेरी कहानी हैं,
तुम ठीक से न पढ़ पाऊंगे,
इस पर बहुत गर्द है

 

 

मेरे दिल से मेरा हाथ मत उठना नीचे जख्म है,
मेरे दिल की दास्तान न सुनना मेरे दिल में दर्द है,

 


नाम संदीप कुमार नर

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