हम वो भवँरे नहीं, जो हर फूल पर बैठते हैं।।
हम वो आदमी नहीं, जो हर बात बदलते हैं ।।
हम वो हमराज नहीं, जो हर राज खोलते है।।
हम वो आम नहीं, जो हर बात पर बोलते हैं ।।
हम वो दीप नहीं, जो हर राह पर जलते हैं ।।
हम वो दीवाने नहीं, जो हर एक पर मरते हैं ।।।
हम वो साकी नही, जो हर महफिल में पीते हैं ।।
हम वो शख्स नहीं, जो खून पी कर जीते हैं।।
हम वो शख्स नहीं , जो मर- मर के जीते है।।
हम वो लालची नहीं, जो हर चीज पाते हैं ।।
हम वो दुश्मन नहीं, जो दुश्मन मिटाते हैं ।।
हम वो बनजारें नहीं, जो दर-दर फिरते हैं ।।
हम वो निवासी है, जो पर्वत पर रहते हैं ।।
लेखक:
संदीप कुमार नर
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