Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जैसा कर्म वैसा फल

 

कुछ लोग कहते है की हर आदमी का जन्म- जन्म का संबंध अपने कर्म से होता है ।

एक राज दरबार में, वहाँ के मन्ञी और राजकुमार को अचानक यह खबर मिलती है की उनके राजा की युद्ध में जीत लेने पर ही मौत हो गई है सभी दरबारीं हैरान थे उनका राजा बड़ा बहादुर है युद्ध मे विजय प्राप्त करते ही कैसे मर गया! उनको अब यह बात की चिन्ता होने लगी की राजकुमार तो अभी सिर्फ पाँच वर्ष का है राजा किस को घोषित करें।

सभी दरबारियों और प्रजा से राय ले कर बड़े मन्ञी ने यह ऐलान राजकुमार किया की जब तक राजकुमार बड़ा नहीं हो जाता।तब तक राजा का छोटा भाई राज गद्दी पर बैठेगा।सभी की राय से राज महल में जशन की तैयारियाँ की धूम धाम से राजा चुना गया।राजकुमार को शिक्षा के लिए ऋषियों के पास आश्रम में भेज दिया गया।

लगभग नो वर्ष के बाद राजा के भाई की भी बुढ़ापे से मौत हो गई।
अब फिर से राज्य में राजा की आवश्यकता थी।राजकुमार को साधुयों से अनुमति लेकर राजकुमार को लाया।

राजकुमार साधुयों से ज्ञान प्राप्त करके अब ज्ञान बना हो चुका था की कौन अच्छा है को न बुरा।राजा सब को एक नजरिए से देखता था।राजा का कोई भी दुश्मन न था।कई दुसरे रियासतों के राजा उसके मित्र बन गए ।

वह भेष बदल कर आपनी प्रजा की दिक्कतों को निपटाने के लिए निकलता ।

उसके राज्य की जनता बड़ी खुशहाल थी। राजमहल मे नाच गाने के जश्न होते थे।राजा को धीरे धीरे एहसास हुआ की मैंने तो जिन्दगी में ऐसा कोई कार्य नही किया जिससे मुझे इतनी खुशियों मिल रही है मैंने तो साधुयों के आश्रम मे जैसा खाना मिला वैसा खाया।

उनकी आज्ञा मान कर जड़ी ले आता।मैंने तो ऐसा कोई काम जिस से मुझे इतना आराम मिला।इस के बारे में राजा सोचता रहता।

एक दिन राजा ने जानना ही चाहा की इस का कारण क्या है।राजा ने ज्योतिष को बुलाया ज्योतिषी ने पाँच दिन माँगे।पाँचवें दिन राय दी "हे राजन,तुम्हें यहाँ से दूर अजनबी इलाके में जाना होगा तुम्हें प्रश्न का उत्तर मिल जाएगा।

अब राजा घोड़ा साथ लेकर अपने राज्य से अजनबी रास्ते की ओर निकल पड़ा।एक दिन उसने सुंदर बाग देखा जो कि फलों से भरा था राजा को बड़ी

भूख लगी थी अंदर से एक आदमी आया और कहां "रूक जाओ, हे राजन! अंदर आपको बुलाया है और राजा हैरान था की इसे कैसे पता की मैं राजा हूँ और अंदर किसने बुलाया है।

उस आदमी के कहने पर राजा अंदर चला गया ।वहाँ उसका दो औरतों ने स्वागत किया।

सबसे पहले उसका घोड़ा पकड़ा पास बाँध दिया ओर राजा के आगे आगे चल कर बहुत अच्छे मकान के अंदर ले गई।राजा यह सब देखकर हैरान था की इतना हरा भरा बाग जो की स्वर्ग जैसा था इतनी खूबसूरती से झोपड़ी जैसा मकान पहले उसने कभी न देखा था।

राजा को नहाने को पहले गर्म पानी दिया गया।खाना खाने के बाद औरतों ने ये बोल दिया "हे राजन पहले आपनी थकावट उतार ले, सुबह तुम्हें प्रश्नों का उत्तर मिल जाएगा"।सुबह हूई तो वह उठा खिड़की के पास जाकर सोचने लगा की इनको कैसे पता है की मै राजा हूँ ओर कैसे पता है की मै प्रशनो का हल निकालने आया हूँ ।

राजा को सुबह का खाना दिया गया ओर औरतों ने बोला यहाँ से 20 कि.मी की दूरी पर एक काले रंग की औरत इसी सड़क के किनारे झोपड़ी बना कर अकेले रहती है जब तू वहाँ से गुजरेगा वो तेरे को पहचान लेगी।तेरे को आवाज दे कर कहेगी तेरे खाना देगी।जो लोगों के घरों मे मजदूरी करके लाती थी।राजा उनकी बातें सूनते ही विदाई लेकर अपने घोड़े के साथ आगे बढ़ता है।

थोड़ी देर बाद राजा के साथ ऐसा ही होता है जैसा वो औरतों ने कहा था। अब दोपहर का वक्त हो चुका था ।उसे को एक बूढ़ी औरत ने आवाज दी "हे राजन रूक जाऊँ राजा ने देखा तो ठीक काले रंग की औरत थी।राजा उस तरल को देखने लगा और घोड़ा बाँध ने लगा।

वह औरत के साथ चल देता है और राजा को खाने को देती है और कहती है " जिस बात का उत्तर तू जाने ने आया है 20की.मी राजा की एक रियासत है उस राज्य के लोग बहुत खून रहते है और राजा को बहुत मिलता है।जब तू वहाँ जाएँगा राजा खूद लेने तुझे आएगा और रात भर पास रखेगा तूम्हें वहाँ से प्रशनो का उत्तर मिल जाएँगा।

अब राजा चलते चलते राजा ओर भी दुविधा में फंस चुका था।जो भी मेरे को मिलता है मेरे सवालों का जवाब न मिला।मुझे आगे से आगे भेजा जाता है।कभी सोचता हूँ की मै यहाँ आया क्यों हूँ कभी सोचता हूँ की मेरे प्रशनो का हल कभी मिल ही जाएँगे।ये सब सोचते सोचते राजा अगले राज्य मे पहुँच जाता है।वह औरत का जो कहना था बिल्कुल उसी तरह राजा अपने दो सिपाहीयो के साथ दरवाजे पर खड़ा राजा का इंतजार कर रहा था।

राजा पास जाकर छोड़े से उतारा ।राजा के उतरते ही एक सिपाही ने घोड़ा पकड़ा। वह घोड़े को लेकर तबेले की और चल पड़ा और राजा ने राजा का हाथ पकड़ कर महल मे ले गया, राजा को देखकर वहाँ का राजा बहुत खुश था उसे महल मे घुमाया गया फिर दोनों ने खाना खाया सोने के लिए दोनों कमरे में गए।

अब रात हूँ तो राजा लेने हुए उस राजा को पुछने लगा,"राजन तुम्हें अपने पिछले जन्म का पता है तो राजा आगे से बोला "हाँ मै एक लकड़हारा था",तेरे को ये भी पता होगा कितने भाई बहन थे राजा ने कहाँ "हम दो भाई आ हमारी बहन थी,और हमारी दो औरतें थी।

उस शाहर के राजा ने आगे बढ़ते कहा, तुम मेरे पिछले जन्म के भाई हो, हमारी एक बहन थी।हमारा काम लकड़ी लेकर आना और बेचना था।और जो पैसा मिलता उस का आटा और नमक लेकर आते थे।इस के अलावा् हमारे पास ज्यादा पैसा न था।

कभी कभी लकड़ी बिकती ना थी भूखे ही सोय जाया करते थे।तूम मेरे बड़े भाई थे मै सबसे बड़ा था,एक रोज हमारे जहाँ सेठ आया था उनके यहाँ शादी थी हमें लकड़यों के लिए कहा गया,हम सब लकड़ी ले आएं लकड़ियां डाल पैसे का इंतजार करने लगे ।

वहाँ पक रहे पकवानो की महक आ रही थी।एक दुसरे को कह रहे थे की ये कितना स्वादिष्ट होगा ।हमने एक दूसरे से कहा," हमें मजदूरी न दो हमें तो एक दिन का खाना खाने के लिए दे दो।"

सेठ ने पैसे दिए हम पैसे लेकर खुश न थे।तो तभी सेठ ने खाना कहां भाई इनको खाना बाल दो घर जाकर खा लेगे।हम घर आए और खाना बाँट लिया ।तभी वहाँ साधु आ गया।

साधु ने कहां "भूख लगी है,कुछ खाने को मिल सकता है" तुम मेरे बड़ेभाई थे और अपने हिस्सा का खाना दे दिया "सभी इंतजार करने लगे की साधु बाबा और न माँग ले,साधु खाता गाया हम सब अपना आपना हिस्सा देते गए।

हमारी जो बहन थी उस ने सोचा की साधु तो सभी का खाना खा गया,मैं अपने खाने का थोड़ा सा स्वाद तो चख लू हमारी बहन ने थोड़ा सा मुँह में बाल लिया,अब साधु ने कहां हम और नही खाएगे,हमारी भूख मिट चूकी है।

अब साधु कहता हूँ चला गया "मैंने आपका खाता है,एक दिन अवश्य बढ़ेगा।

 

 

'तू राजा बन गया, हमारी जो औरतें थी वो बालो की मालिकन है,जिसके पास तू पहले गया,जो बूढ़ी औरत थी जो मजदूरी करके खाती है वो हमारी बहन है ये कर्म का फल है....

 


किसी भी भूखे को खाना खिलाने से भला होता है,ऐसा साधु कहते है।

 

 

 

संदीप कुमार नर

 

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