Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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पता

 

बस थोड़ा ‘स, मोड़ आगे, उसकी गली,
मेरी जिन्दगी में अहम, क्यों उसकी गली।

 

मेरी सोच का हिस्सा बड़ा, उसकी गली,
जुड़ी जिन्दगी की कहानी, उसकी गली।
मेरे दुःखों में सकूँन लाए, उसकी गली,
क्यों मन चाहे, रोज जाऊ, उसकी गली।

 

बस थोड़ा ‘स, मोड़ आगे, उसकी गली,
मेरी जिन्दगी में अहम, क्यों उसकी गली।

 

कई लोग मुझे ताने देते, मैं जाऊँ , उसकी गली।
कई लोग मुझे शाबाशी देते, अगर जाऊँ, उसकी गली।
आती हंसी की गूँज, जहां उसकी गली, उसकी गली,
हर साज की आवाज, सुने उसकी गली।

 

बस थोड़ा ‘स, मोड़ आगे, उसकी गली,
मेरी जिन्दगी में अहम, उसकी गली।

 

क्यों दुनिया से अलग लगे, उसकी गली,
पद पर्वतो से ऊँचा लगे, उसकी गली।
इधर पास-दूर चर्च में, उसकी गली,
इस शहर का सिंगार, जानी उसकी गली।

 

बस थोड़ा ‘स, मोड़ आगे, उसकी गली,
मेरी जिन्दगी में अहम, क्यों उसकी गली।

 

कभी सोचूं नुकसान, अगर जाऊँ, उसकी गली,
पर लाभ बड़ा पाया, जाकर, उसकी गली।
नई पहन कर पोशाक जाऊँ, उसकी गली,
नई सोचो में डूब जाऊँ, उसकी गली।

 

बस थोड़ा ‘स, मोड़ आगे, उसकी गली,
मेरी जिन्दगी में अहम, क्यों उसकी गली।

 

तूझे सोफीं और शराबी मिलेंगे, उसकी गली,
नहीं कोई तंग हाल रहता, उसकी गली।
क्यों हर कोई पता पुछे , उसकी गली,
‘संदीप’ भूले न भूलाई जाएँ, उसकी गली।

 

बस थोड़ा ‘स, मोड़ आगे, उसकी गली,
मेरी जिन्दगी में अहम, क्यों उसकी गली।

 

 

 

लेखक:
संदीप नर

 

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