हाँ फिर बचपन की निंदिया में सोना है
उन् अधूरे ख्वाबों में खोना है
रात को तारो संग बतियाना है
इस दुनिया से मुझे दूर जाना है
ये आशियाना शायद मुझे नही भाता
जो सब सुनना चाहें वो गीत मुझे नही आता
ऊँची कद की है ये दुनिया
मै कहाँ एक निरर्थक बोना
सपनो का संसार बनाया
उसमे ना थी कोई मोह माया
ना जाने किस की घ्रण मंशा थी
मैंने वो घरोंदा गंवाया
हाँ मुझको फिर निर्भय निडर होना है
हर मंजिल पा सफल होना है
पर खोफ ये भगाया जाता नही है
मुझे कुछ पल को तनहा होना है
हाँ मुझको जी भर रोना है !........
..........© संदीप सिंह रावत (पागल)
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