Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बरसाती दोहे

 

सारे दिन चलता रहा,बूँदों का व्यापार ।
सूद धरा को मिल गया, बाकी रहा उधार ।।

उमड़-घुमड़ घन छा रहे, कामुक हुई बयार ।
बूँदों की रस धार ले, नभ से बरसा प्यार ।।

 


@संदीप सृजन

 

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