जिन्दगी के आस पास देखता हूँ ।
अपनी नजर से कुछ खास देखता हूँ ।
कलम स्याही मे डुबोने से पहले ।
खुद का आत्मविश्वास देखता हूँ ।
तमस से लड़ने की आदत क्या हुई।
हर वक्त भीतर उजास देखता हूँ ।
सियासत से दोस्ती करने से पहले ।
अपने वतन का विकास देखता हूँ ।
खबरो का विस्तार अक्सर करता हूँ ।
पर पहले संधि व समास देखता हूँ ।
@संदीप सृजन
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