घन घनघोर घटा लिए, आज खड़े है द्वार।
बूँदों मे देने लगे, घट भर कर उपहार ।।
घट भर कर उपहार दे, भर दे पोखर ताल ।
धरती का आँगन करे, बादल मालामाल ।।
बादल मालामाल हो, लोटे अपने देश।
'टेक्स'बचाने के लिए,धरा ओधड़ी वेश ।।
धरा औघड़ी वेश औ' ,घर घर अलख जगाय ।
बच्चे, बूढे औ' युवा, सबको बादल भाय ।।
@संदीप सृजन
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