अब झूठे लगने लगे, जीवन के मधुमास।
पग पग पर मिलने लगे, कांटे औ' संत्रास ।।
काँटे औ' संत्रास को,कैसे कह दे मित्र ।
अंदर औ' बाहर चुभे, दोनो एक चरित्र।।
दोनो एक चरित्र है, दुख दोनों के पास।
तन मन को पीडित करे, हर लेते मधुमास ।।
@संदीप सृजन
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