दुनिया नहीं मांगते है
बस दो गज जमीं चाहिए I
चाहत ------ संदीप तोमर
होंठ सूखे है कब से
बूंद दो बूंद नमीं चाहिए I
बहुत दे दिए दर्द
अब तो कुछ कमी चाहिए I
जी लिए घुट घुट के
फकत सामान अब सभी चाहिए I
गुंडे मवालियों ने उजाड़ी बस्ती
इन झोपडो को अब नबी चाहिए I
अश्क और क्या बहाएं
चेहरे पर अब हंसी चाहिए I
भूखे पेट क्यों रहे "उमंग"
स्वाद लजीज बस अभी चाहिए I
संदीप तोमर
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