Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

एक आस्था

 

मेरी कविता
कोई आडम्बर नहीं
कोई बवंडर भी नहीं
महज इत्तेफाक भी नहीं
यह -----
तुम्हारे मेरे बीच पनपे
रिश्तों का धरातल
तय करती;
तुम्हारी कड़वाहटो का जहर
कंठ में धारण कर
पथरीले रास्तों से
गुजरती
तुम्हारे क्रोध की अग्नि में
झुलसती
तपती
तपकर खरा सोना बनती
मेरी कविता
एक "आस्था" है
तुम्हे पा लेने भर की
एक आस्था।

 

संदीप तोमर

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ