Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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हालात

 

दुपहरी में आँख से टपकता है लहू
समुन्द्र किनारे टहलता
बैशाखी लिए एक अपाहिज
और उसके पास ही
एक बच्चा चुपचाप
मिटटी का घरोंदा बनता है
एक औरत इनोवा का शीशा उतारती
अपने अर्ध वस्त्रों से बहार उड़ेलती
अपना विक्षिप्त यौवन
एक बूढ़ा तलाश रहा
वृधाश्रम में आशियाना

 

दुपहरी में पसीना
करता है तर मेरा तार तार होता
बनियान
मैं अपने घर की टूटी दिवार पर
टिका अपना कन्धा
तुम्हारी यादों को संजोता
हवा से सुखा देना चाहता हूँ
अपनी आँख का लहू

 

तुम्हारा अट्ठाहस
कंपा देता है मेरी रूह
लहू बहता है अब नदी सा
सीलन भरी कोठरी में
कुनमुनाने लगता है
हमारा पांच साल का बेटा
मैं आगे बढ़
दरवाजा खोलता हूँ
आँख का लहू समेटते हुए

 

 

संदीप तोमर

 

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