स्वार्थ की हथेली पर बैठी
घात, अघात,प्रतिघात
के अभ्यस्थ
वंचकों के घर गिरवी पड़ी
ईमानदारी
विजात हुई जाती है।
कल पितामह बंधा था
सिंघासन से
परन्तु
आज वह भी शामिल है
दुर्योधन की भड़वा भीड़ में
और चीर हरण के लिए
आज दु:शासन नहीं
खड़ा होता है अर्जुन या भीम।
सवाल यह भी है
कि
क्या आज
चीर हरण की गुंजाईश है
जहाँ चहु और
सोंदर्य की नुमाइस है।
वंदक की चाह मधुबाला
मन मंदिर में मधुशाला
प्याली टूटने में संशय है आज
क्योंकि
सूरा के स्थान पर सुंदरी विद्यमान है।
वागीश विप्लव हुआ जाता है
घटाकाश वृधि दर्शाता है
सुर लिए है विजयी मुस्कान
देवता पराजित है,भयभीत है
सुविधहीन है।
भावनाओं का पंछी कैद
पिंजरे में छटपटाता है
रिश्ते सड रहे है
बन कूड़े करकर का ढेर
अँधियारा हर तरफ
उपस्थिति अपनी दर्ज कराता है।
आशादीप बुझने के कगार पर भी
टिमटिमाता है
की शायद फिर कोई
कृष्णा होगा अवतरित
फिर लेगा जन्म बाल्मीकि
फिर आएगा कोई शिव गरल पीने।
ईमानदारी अपना हुनर दिखाती है
आशादीप पर ठहाके लगाती है
बन वंचक की जागीर
वल्लिका सी बढती जाती है।
संदीप तोमर
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