मौसम की तरह अपने रंग
बदलती रही जिन्दगी
कभी बसंत बनी
सरसों के बसंती फूल सी
महकती रही जिन्दगी।
कभी सर्द मौसम बनी
कोहरे की चादर ओढ़े
रात भर भटकती
ठिठुरती रही जिन्दगी।
कभी पतझड़ बनी
सुखी सी बेजान
झाड़ते पत्तो सी
पीली पड़ी जिन्दगी।
कभी बरसात बनी
बादलों की कालिमा लिए
टप-टप आँसू बहाती
सिसकती रही जिन्दगी।
संदीप तोमर
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