Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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किसको अपनी व्यथा सुनाऊ

 

शब्दों पर अर्थों की छाया
अर्थों पर शब्दों की माया
कितनी देर कितनी दूर तलक
सब कुछ है ठहरा - ठहरा
शब्दों का मै पहरेदार
अभिव्यंजना में कहाँ समाऊँ
किसको अपनी व्यथा सुनाऊँ;

 

नित् जाल फैला शब्दों का
इच्छाओं का दाना डाल
तेरे-औ - निज कर्मों की
आशाओं की ओट
सन्दर्भों का बन आखेटक
तर्कों को क्यों सताऊँ
किसको अपनी व्यथा सुनाऊँ ;

 

तू मेरी आशा की रजनी
मै सुगंधा का मर्मर भंवरा
चंपा-औ - बेल की खातिर
भटक भटक बगिया में
उजाले का मै बन प्रदीपक
चन्द्र आभा में मैला जाऊँ
किसको अपनी व्यथा सुनाऊँ ;



तुम हो श्रंगारो की जननी
रूप-कुरूप की संयुक्त संगनी
प्रेम की चंचल रमणी को
ह्रद-पोखर में नहलाकर
कोमल अंगों को सहलाकर
नभ की कैसे सैर कराऊँ
किसको अपनी व्यथा सुनाऊँ ;

 

तुम हो एक सुर का प्याला
लाखों को है रोज संभाला
कैसे निगलूँ मुख से निवाला
जो तूने था उर में डाला
तेरे सुर से मै पगलाकर
कैसे जीवन धारा बहाऊँ
किसको अपनी व्यथा सुनाऊँ।

 

 


संदीप तोमर

 

 

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