Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

निष्ठाएं

 

निष्ठाएं

 

निष्ठाओं का कटोरा
थामे हाथ
दर्द से परेशां
हुए लहूलुहान
हुआ मन परेशां
रह -रह कुचलते
अरमान

 

निष्ठाएं ----
भरी दोपहर के सूरज की
गरमी सी तपती
बार - बार , हर बार
काली पड़ी दिखी
अमलतास की सी
पीछा छुड़ाने की जद्दोजहद में
लगा रहा मैं
हर निष्ठाओ से,

 

मगर चिपकी रही
मेरे मन से, मेरे दामन से
मेरी निष्ठाए
निष्ठाओं का कटोरा
छलकने के कगार तक
भरा है लबालब
और नहीं ,जगह खाली
लेशमात्र
बंद है सिलसला अब
निष्ठाओं के आने और जाने का।

 

 

संदीप तोमर

 

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ