निष्ठाएं
निष्ठाओं का कटोरा
थामे हाथ
दर्द से परेशां
हुए लहूलुहान
हुआ मन परेशां
रह -रह कुचलते
अरमान
निष्ठाएं ----
भरी दोपहर के सूरज की
गरमी सी तपती
बार - बार , हर बार
काली पड़ी दिखी
अमलतास की सी
पीछा छुड़ाने की जद्दोजहद में
लगा रहा मैं
हर निष्ठाओ से,
मगर चिपकी रही
मेरे मन से, मेरे दामन से
मेरी निष्ठाए
निष्ठाओं का कटोरा
छलकने के कगार तक
भरा है लबालब
और नहीं ,जगह खाली
लेशमात्र
बंद है सिलसला अब
निष्ठाओं के आने और जाने का।
संदीप तोमर
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