Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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रिश्तों के बोझ से कब दबती है जिन्दगी

 

रिश्तों के बोझ से कब दबती है जिन्दगी
मुठ्ठी के रेत सी निकलती है जिन्दगी

ख्वाबों की आरज़ू में भटका हूँ दर- बदर
किस ख्वाहिश में यूँ खिसकती है जिन्दगी

यूँ भी न छुपाओ जज्बात हौसलों से फकत
लहू बन सनम सीने से टपकती है जिन्दगी

यूँ न करो हाले बयां दर्द-ए-मोहब्बत यारो
लम्हा लम्हा हर रोज़ सिसकती है जिन्दगी

बेपर्दा न हो हालात गमो के नाजुक मोड़ पर
तुम्हारी यादों में क्यूँकर उफनती है जिन्दगी

मैं तो साथ दे दूँ उम्र भर जो तुम कह दो
रंज-ओ-गम में अक्सर उलझती है जिन्दगी

कहीं आँख से आँसूं न छलक जाएँ "उमंग"
बहाना ही बना दो के खटकती है जिन्दगी

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