सुनसान हैं सड़कें
छाई है उदासी चहु ओर
शशि की आभा
मिट सी गयी है
झुका लो पलकें
पोंछ डालो नयनों का काजल
बंद कर लो खिड़कियाँ
दिलों की .....................
चूल्हे के धुंए का
अता - पता नहीं कोई
तारों की छाँव
नम हो चली है।
सुनाई दे रही है
दर्दनाक चींख
गीला किये है
बिस्तर
अश्रुधारा ......................
मिटा डालो अनुभूति प्रेम की ............
ख़त्म कर डालो
सब दया भाव ...................
भूल जाओ खोजना
पथ ......................
छोड़ दो नापना
दिलों की गहराई
त्याग दो प्रेयसी का साथ
होने को है प्रलय
आ रहा है काल का रथ।
संदीप तोमर
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