Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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अभी मै कुवाँरा हूँ

 

अपनी मर्जी का मालिक हूँ
जो चाहे मै करता हूँ
नही किसी से डरता हूँ
अपनी मस्ती मे मस्त
मै एक बंजारा हूँ
अभी मै••••••

 

 

 

दिवा स्वप्न मै देखता हूँ
कलियो से आखे सेकता हूँ
अंदाज थोड़ा शायराना है
कलम से मै गालिब हूँ
हरकतो से थोड़ा आवारा हूँ
अभी मै••••••

 

 

डूबा रहूँ मस्ती मे
आग लगे बस्ती मे
मस्त पवन के जैसा
उन्मुक्त नदियो के जल सा
बहता हुआ एक धारा हूँ
अभी मै••••••

 

 

अभी तक तो सिंह हूँ
स्वतंत्रता का चिन्ह हूँ
बीवि का मुझको खौफ नही
शादी का मुझको शौक नही
नही किसी पर दिल हारा हूँ
अभी मै••••••

 

 

न चिक-चिक किसी से होती है
न मेरी नीदे खोती है
दिन-रात मुझे कोस-कोस के
न पलके कोई भिगोती है
सारे लफड़ो से दूर मै
अपनी आखो का तारा हूँ
अभी मै•••••••

 

 

करता हूँ बाते तारो की
राते मस्त बहारो सी
न किसी एक पर मरता हूँ
न दरकार मुझे हजारो की
अपने हाल पे मस्त
मस्ती का एक किनारा हूँ
अभी मै•••••••

 

 

नित ख्वाब नये नये देखु
कुछ लम्बी चौड़ी मै फेकु
कभी किसी की बात करूँ
तो कभी किसी की नाम धरूँ
मै,नही कोई बेचारा हूँ
अभी मै•••••••

 

 


°•°•°•संदीप अलबेला•°•°•°•°•

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