Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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अरमान तो बड़े कैद हैं दिल के पिंजरे में

 

 

अरमान तो बड़े कैद हैं दिल के पिंजरे में,
कम्बख्त तंगहाली सब पर भारी है,

 

सपने बड़े महंगे है इस दुनिया में
और हम तो निपट बेरोजगार ठहरे,

 

ये बड़ी - बड़ी डिग्रीयां कागज के टुकड़े लगती हैं, साहब !
इन्हें बेचने पर भी दो रोटी का इन्तजाम न होगा

 

लौट आता हूँ रोज बाज़ार से खाली हाथ ये सोच कर,
के कुछ पैसे होते तो मैं भी सपने खरीदता,

 

मैंनें हसरतों के उड़ान का मंझा कस के रखा है,
हल्की जेब और ऊँची उड़ान अच्छी नहीं होती,

 

 


संदीप अलबेला

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