Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बाल मन की ब्यथा

 

abodh bachche

 

जग के देखी देखा पप्पा हमरा अंग्रेजी मे नाम लिखावत है।
जल्दी से अब लइका हमरो बड़का अफ़सर हो जाई।
घूम-घूम बतियावत है।
हिन्दी हमका दुलरावत है त अंग्रेजिया आख दिखावत है।

बचपन हमरा बीत रहल बा
किताबिन के अदला-बदली में
पीर न जाने हमरी कोई
सब मस्त फिरे अपनी धुन मे
अपने त कछु जानत नइखे, कछु पुछन पे(पप्पा) आँख दिखावत है।
हिन्दी.......

जग में उनकर मान रहे
उपर उनकर अभिमान रहे
अपने ऊँची नाक के खातिर(पप्पा) हमका दुइ भाषा मे पिसवावत है
हिन्दी.....

कितबिया क लीखल अम्मा !
हमरा कछू समझ न आवत है
छोट-छोट बतियन प मास्टर खूब-खूब लतियावत है
हिन्दी......

कल तक हम गीन-गीन के सगरो प्रश्न लगावत रहली
अपने कछा मे अम्मा हम
मेडलो अक्सर पावत रहली
आज कितबीया देखला पर
भषओ समझ न आवत है
हिन्दी......

सगरो कार होवे हिन्दी मे
अंग्रेजिया जिउ के जंजाल लगे
भोले भाले हम लइकन के
ई भाषा माया जाल लगे
कइसे पढ़ी हम ध्यान लगा के
कछु समझ नही आवत है
हिन्दी...

दुइ भाषा क बीच मे "संदीप" हमरो अइसन हाल भईल
कितबिया देख बुखार लग जाय
जाने अईसन का बात भइल
पीर भइल भारी दिल मे काहू दवा नही करावत है
हिन्दी....
रचनाकार
संदीप "अलबेला"

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