Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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एक दर्द मुझमे भी कही पलता है

 

एक दर्द मुझमे भी कही पलता है
मोम जख्मो का नैनो से पिघलता है

 

 

भीग जाता है मेरा रोम-रोम बारिस की बूदो से
और याद में उसकी मेरा तन मन जलता है

 

 

न चलती है सांसे न रूकी है सीने में
जिन्दगी का सुरज इस तरह से ढलता है

 

 

उसके हाथो की मेंहदी और तन की हल्दी
लाल रंग चुनर का मुझे सप्राण ही निगलता है

 

 

ये छोटा सा दिल मेरा कितना जिद्दी हो गया
उसके साथ की खातिर बस मुझी से लड़ता है

 

 

कहा था हमने रखेगें तेरे खयालो को दुल्हन बना के
न जाने क्यो दिल मेरा तुझे पाने को मचलता है

 

 

एक दर्द मुझमे भी कही पलता है
मोम जख्मो का नैनो से पिघलता है

 

 

**** संदीप अलबेला ****

 

 

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