Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

एक कुर्सी को देखा तो ऐसा लगा - -

 

एक कुर्सी को देखा तो ऐसा लगा - -
जैसे नोटो की सेज,
जैसे भरी हो अपनी जेब,,
जैसे ताजा ताजा गोश्त,
साथ न कोई हो दोस्त ,,
जैसे जन्मों की प्यास,
जैसे प्राणों की सांस,,
जैसे मै दरीद्रदास और ये भारत की आस

 

एक कुर्सी को देखा तो ऐसा लगा
जैसे घोटाला नया,
जैसे खजाना मिल गया,,
जैसे ठेंगे पर कानून,
जैसे सत्ता का जुनून,,
जैसे ताजी मलाई,
जैसे न हो हलवाई,,
जैसे गरीबो का माल और मै धन्ना सेठ

 

एक कुर्सी को देखा तो ऐसा लगा
जैसे 56 का सीना,
जैसे आलीशान जीना,,
जैसे स्विस बैंक का माल,
जैसे रगो में उबाल,,
जैसे दंगा फसाद,
जैसे चढ़ावे का प्रसाद ,
जैसे अबला स्त्री और सुनसान रात..

 

 


_संदीप अलबेला_

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ