हवाएँ कभी कश्तियों को मंजिल से मिला देती हैं।
हवाएँ कभी कश्तियो को मजधार में डुबा देती हैं।
इश्क की किस अदा का ऎतबार करूँ यारो
इश्क कभी जिन्दगी को जन्नत बना देती है
इश्क कभी जिन्दगी को जहंनम बना देती है।
संदीप "अलबेला "
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हवाएँ कभी कश्तियों को मंजिल से मिला देती हैं।
हवाएँ कभी कश्तियो को मजधार में डुबा देती हैं।
इश्क की किस अदा का ऎतबार करूँ यारो
इश्क कभी जिन्दगी को जन्नत बना देती है
इश्क कभी जिन्दगी को जहंनम बना देती है।
संदीप "अलबेला "
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