जाने कैसी ये तड़प है, रूह की प्यास अधूरी है।
मिलते है छीतिज पर गगन व धरा,फिर क्यो ये दूरी है।
जमाने के दस्तूर से क्या वास्ता मेरा,
सच तो ये है,तेरे बिन मै अधूरा हूँ,
मेरे बिन तू अधूरी है।
संदीप "अलबेला"
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जाने कैसी ये तड़प है, रूह की प्यास अधूरी है।
मिलते है छीतिज पर गगन व धरा,फिर क्यो ये दूरी है।
जमाने के दस्तूर से क्या वास्ता मेरा,
सच तो ये है,तेरे बिन मै अधूरा हूँ,
मेरे बिन तू अधूरी है।
संदीप "अलबेला"
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