जाने क्यूँ लोग डरते हैं शमशान से?
कई घरों के चुल्हे जलते हैं शमशान के पीछे,
वो पिता खुद जर्जर इमारत हो गया,
पूरी उम्र व दौलत झोक दी जिससे नयी पीढ़ी के मकान के पीछे,
क्यूँ बांटा माँ बाप और उनके परिवार को?
सर फोड़ना था तो फोड़ा होता जर, जमीन और सामान के पीछे,
लोग ठहाके लगाते हैं लतिफो पर मेरे,
कमरे के आइनो ने देखें हैं आंसु मेरे हर मुस्कान के पीछे,
कतारें नहीं थमती नज्मों पर मेरे,
फुर्सत किसे जो झाँके मेरे अधूरे अरमान के पीछे,
फूलों की ताजगी बहारों की रौनक सब कुछ बयां करती है,
बहा है माली का खून पसीना खूबसूरत गुलीस्तान के पीछे,
जो कहते थे इस्लामाबाद और लाहौर भी अपना होगा,
वो कानों में तेल डाले बैठे हैं धूर्त पाकिस्तान के पीछे,
कल प्रेमिका के भाई ने कूट दिया था सरे बाजार दोनों को,
तभी तो मिलने बुलाया है मुझे अपनी ही दूकान के पीछे,
*संदीप अलबेला*
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