Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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कुछ दोहे

 

संदीप "अलबेला "

 

 

 

  • जटिल था जब तक खुश था तब तक
    अपनो ने कहा सुलझ जाओ
    अब जो सुलझ गया हूँ
    तो अपने ही उलझा देते है

     

  • विकास की अंधी दौड़ ने
    छीना सबका चैन।
    देख प्रकृति की दुर्रदसा
    रोवत हरी के नैन।

     

  • नैना मोरे सावन- भादो, बरसत है दिन रैन।
    दर्शन हो जो अपने पिया के, आये हिय को चैन।।

 

 

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