संदीप "अलबेला "
जटिल था जब तक खुश था तब तक
अपनो ने कहा सुलझ जाओ
अब जो सुलझ गया हूँ
तो अपने ही उलझा देते हैविकास की अंधी दौड़ ने
छीना सबका चैन।
देख प्रकृति की दुर्रदसा
रोवत हरी के नैन।नैना मोरे सावन- भादो, बरसत है दिन रैन।
दर्शन हो जो अपने पिया के, आये हिय को चैन।।
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY