Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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कुछ टूटे हुए सपनो को सजाने में लगा हूँ

 

 

कुछ टूटे हुए सपनो को सजाने में लगा हूँ
कुछ रूठे हुए अपनो को मनाने मे लगा हूँ


ऐ आँधियो बदल लो रास्ता अपना
मै उजड़े हुए चमन को बसाने मे लगा हूँ


उनके आँसुओं को लतिफो में बदल डाला
खुद शिसकियो को अपनी दबाने मे लगा हूँ


वो नही हुए है मेरे पर बेवफा नही है
अब याद उनकी दिल से मिटाने में लगा हूँ


मजहब के नाम पर तो फूका है बस्तियों को
अब आग नफरतो की बुझाने में लगा हूँ


फूक डाला अपने अरमानो को उनके खतो के साथ
खतो की राख को अब चंदन बनाने में लगा हूँ

 

 


संदीप अलबेला

 

 

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