खुद ही मे उलझा रहता हूँ
खुद को ही मै समझाता हूँ
अपनी व्यथा मै किसे सुनाऊँ
प्रीये तुम....
तुझसे मै मिलता था ऐसे
खुदा से मिलता हो मै जैसे
रब ही जब मेरा रूठ गया
फिर किसका मै अब ध्यान लगाऊँ
प्रिये तुम....
घर में तेरे सौगाते आयी
शगुन में लिपटी बातें आयी
आँगन मे गूँजे ढोल-नगाड़े
मै आँसु के दीप जलाऊँ
प्रीये तुम......
तन तेरे लिपटी थी हल्दी
और तेज मेरा था पीला पड़ा
हाथो में रची तेरे मेंहदी
और मै था निश्तेज खड़ा
क्या भूलूँ मै क्या विसराऊँ
प्रिये तुम....
मन तेरा था हरसाया,
देख के साजन की बारात
कदम थे तेरे बहके-बहके,
जब सोची तूने मेरी बात
कल और आज की बन्दीश तोड़ के
लिये थे तूने फेरे सात
पल-पल मै मिटता ही जाऊँ
प्रीये तुम....
शरद की ठिठूरी रातों में
साजन की प्यारी बातो से
जब याद मेरी आयी होगी
आँखें तेरी भर आयी होंगी
किससे रूठू मै किसे मनाऊँ
प्रीये तुम.....
रचनाकार
संदीप "अलबेला"
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