Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

प्रीये तुम भूली मै क्या गाँऊ

 

खुद ही मे उलझा रहता हूँ
खुद को ही मै समझाता हूँ
अपनी व्यथा मै किसे सुनाऊँ
प्रीये तुम....

 

तुझसे मै मिलता था ऐसे
खुदा से मिलता हो मै जैसे
रब ही जब मेरा रूठ गया
फिर किसका मै अब ध्यान लगाऊँ
प्रिये तुम....



घर में तेरे सौगाते आयी
शगुन में लिपटी बातें आयी
आँगन मे गूँजे ढोल-नगाड़े
मै आँसु के दीप जलाऊँ
प्रीये तुम......

 

तन तेरे लिपटी थी हल्दी
और तेज मेरा था पीला पड़ा
हाथो में रची तेरे मेंहदी
और मै था निश्तेज खड़ा
क्या भूलूँ मै क्या विसराऊँ
प्रिये तुम....



मन तेरा था हरसाया,
देख के साजन की बारात
कदम थे तेरे बहके-बहके,
जब सोची तूने मेरी बात
कल और आज की बन्दीश तोड़ के
लिये थे तूने फेरे सात
पल-पल मै मिटता ही जाऊँ
प्रीये तुम....

 

शरद की ठिठूरी रातों में
साजन की प्यारी बातो से
जब याद मेरी आयी होगी
आँखें तेरी भर आयी होंगी
किससे रूठू मै किसे मनाऊँ
प्रीये तुम.....

 

 

 

रचनाकार
संदीप "अलबेला"

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ