मै खुद अपनी किश्मत का सत्यानाशी हो गया,
चंगी कुड़ियों की नजर में बासी हो गया,
जब से हुई है शादी मेरी, बीवी ने घर को स्वर्ग बनाया,
और मै स्वर्गवासी हो गया,,जाने क्यूँ, फिर सांसे भारी है आज
जाने कैसी फिर लाचारी है आज
यूँ तो हजारो दिलो पर राज है लतिफो का मेरे
क्यूँ लगता, जैसे कोई शिकश्त करारी है आज
जबसे वो लड़की, मेरे दिल-वो-दिमाक पर छायी हुई है।
इश्क मुश्क के सिवा न कोई दूजी पढ़ाई हुई है ।
न पूछो के दर्द कहाँ-कहाँ से उठता है ,बदन में मेरे
जबसे उसके भाई के हाथो मेरी पिटाई हुई है।....हाय.......हायगाये बागो में जो कोयल तो,तेरी याद आती है
खिले गुलमोहर की कोपल,तेरी याद आती है
डूबा ही मै रहता हूँ,तेरे ही खयालो में
सुनी जो लग्न की हलचल तो तेरी याद आती है।
न जी पाये वो जिंदगी अपनी,न मौत हासिल उसको हो।
खुद से ही वो घबरा जाये, औरो के भी न काबिल हो।
तिल-तिल मरे वो मौत अपनी, नारी अस्मिता का जो कातिल हो।
सुरज भी ढल गया है
अब रात लगी है होने।चंदा की रौशनी ने
तारो के होठ चूमे।दिन की उमस से आजिज
तुम भी चले हो बिस्तर
मै भी चला हूँ सोने ।
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