Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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ऑखो के समंदर से छलके ये आसू भी

 

ऑखो के समंदर से छलके ये आसू भी
मझधार मे अकेला छोड ,बह जाते है

 

 

अब तो खामोशी भी इजहार करती हैं
लब्ज़ो का काम तनहाई बया करती हैं

 

 

कितना भी कहे के दिल मे पनपते मोहब्बत के जज़्बात ही तो
तकदिर-ए-दिल की लकिरे बदल देती हैं

 


फिर भी क्यों कुर्बान होने के अफसाने अक्सर ही
लैला मजनू के नसीब में होते हैं

 

 

संगीता देशपांडे . .

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