Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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अपनी यादो को समेटा जा रहा हूँ

 

अपनी यादो को समेटा जा रहा हूँ
तन्हा होकर मायुसीसे जी रहा हूँ
सिध्दतसे इनको दबाए जा रहा हू
जनाजा इनका उठाए जा रहा हूँ
डरता हूँ ये आँखो से ना छलके
लबो पे मुस्कुराहट लाए जा रहा हूँ
अपनी यादो को...................

 


इक कशिश दिल मे लिए जा रहा हूँ
बेवफा का इल्ज़ाम लिए जा रहा हूँ
जज्बातो को अपने संभाले जा रहा हूँ
बेगानोमेंही अपनो को ढुँढ रहा हूँ
थोडा सहमा सहमा सा जी रहा हूँ
अपनी यादो...............

 


कोई शिकवा न शिकायत कर रहा हूँ
जख्मो को भी हँसकर पी रहा हूँ
इन्हे भूलाने के लिए जुझ रहा हूँ
इसलिए मारा मारा घुम रहा हूँ
अपनी यादो......... ..

 

 


संगीता

 

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