खामोशी मे लिपटी रात
युही करवटें बदलती हैं
चुपचाप खडा पल भी
आहिस्ता आगें बढ जाता हैं
घरकी बुड्ढी हड्डियाँ
राह ताकते रहती हैं
और कभी कभी
किसी कोने से आती हुई
दबी दबी सिसकियां
सन्नाटे को और भी
गहराई मे डूबाती है
जब घर की दहलीज
लाँघकर अपने ख्वाब
पूरा करने की चाहतमें
अपनी एक अलग ही
दुनिया बसाने कोई
अपनों से बिछड़ कर
चला जाता हैं और
वही बसेरा करता हैं
संगीता
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