Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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क्यों मै रिश्तो की उलझनों मे

 

क्यों मै रिश्तो की उलझनों मे
सारी उम्र युँही जूझता रहा ?

 

ऐतबार और एहसास के धागों में
मोतियों की तरह उन्हे पिरोता रहा

 

वजूद तो इन्हीं से,जानता था मैं
सिलवटें आने पर क्यों कोसता रहा?

 

सपने तो बहुत संजोये दिनरात
साथ के लिए क्यो तरसता रहा ?

 

बस,यह आख़री बार कहकर
अक्सर रिश्तों की डोर में बंधता रहा

 

सुलझाने पर जान गया हूँ अब ए जिंदगी
के थोड़ी खूशी थोड़े गम में ही मज्जा आता रहा

 

 

 

संगीता

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