Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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चमकीला सांप

 

सांप ! !
चमकीले सांप ! !
ओहो............
मीठे जहर के
स्वामी सांप ! !
जरा देखो...........
मेरे सीने पे लोटते-लोटते
कहीं तुम्हारी केंचुली
घिस तो नहीं गयी ????

 

चलो ! !
तुम्हें किसी चिकित्सक
को दिखा आएं ! !
के बहुत दिनों से तुमने
डंक नहीं मारा ????

 

फन भी नहीं उठाया ??
अपनी फुसफुसाहट
की कला से
किसी के कान भी
नहीं भरे ????

 

क्या कहूँ ! !
अब तो मैं चिंतित हूँ ! !
कहीं मेरे दोगले
साँप का गला
चोटिल तो नहीं ????

 

कहो ??
के सबसे अधिक
अपने प्रेम से
तुमने ही तो
मेरे जीवन को
असहनीय बनाया है ! !
उसे बदनामी की
चादर में ढककर
नामी बनाया है ! !

 

चलो ना..........
फिर अपने मूल
स्वाभाव का
रंग दिखलाओ ! !
और कुछ दिनों
के लिए
मुझे रुलाओ ! !
खुद भी
मस्ती लो और
दूजों का भी
मन बहलाओ ! !
ऐ सांप ..........
चमकीले सांप ..............! !

 

 

 

संजना अभिषेक तिवारी

 

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