अपने ही विचारों में मग्न गंगू कब प्रभात जमींदार के द्वारे जा पहुंचा, उसे पता ही नहीं चला। अंदर से आती क्रोधाग्नि की भभकियों ने उसके कदमों को द्वार पर ही जमा दिया। भीतर प्रभात ज़ोर – ज़ोर से चिल्ला रहा था,
“तेरी इतनी हिम्मत मेरे बगीचे से आम चुरा कर खाएगा । देख कल्लू अभी तो छोड़े दे रहा हूँ ,अगली बार तेरी टाँगे तोड़कर हाथ में दे दूंगा । ना रहेगा बाँस ना बजेगी बांसुरी ,चल भाग यहाँ से ।
बाहर निकलते कल्लू का लहू लोहान मुंह देख कर गंगू की हालत पस्त हो गयी । मन मारे डर के पसलियों तक उछलने लगा । लेकिन बच्चों के भूखे चेहरे याद आते ही वो सट से द्वार के भीतर कूद पड़ा । अंदर बाबू साहब नौगोल में बैठे थे और बगल में उनका सेवक उनके लिए खैनी बना रहा था ।
“ बाबू साहेब प्रणाम ।“
“ क्या रे , क्या चाहिए गंगू” बाबू साहब बोले ।
“ आपका आशीर्वाद चाहिए हुज़ूर , आपकी दया दृष्टि की आस लेकर आया हूँ ” ।
“ए साफ बोल , हमारे पास फालतू टाइम नहीं है ” बाबू साहब कड़के ।
कडक लहजा सुन कर समाजभीरू गंगू अपने ईश्वर तुल्य जमींदार के पैरों में जा पड़ा।
“मालिक बाल बच्चे दो दिन से भूखे है । थोड़ा पैसा मिल जाता तो --------“
“किस चीज के उपर कर्ज़ दूँ तुझको , तेरी सारी जमीन तो पहले से ही मेरे पास गिरवी पड़ी है” ।
“बाबू साहेब , माँ की कसम खाते है आपका सारा मूल और बयाज़ चुका देंगे । अभी थोड़ी दया करें,बच्चों की दुआ मिलेगी आपको ” ।
“ बईमान तेरी दुआ को क्या मैं चाटू । थोड़े अपने हाथ पैर क्यूँ नहीं हिलाता , खेतों मे मजूरी क्यूँ नहीं करता ” ।
“किसी के भी खेत में जगह नहीं है हुज़ूर , इसी वजह से भूखों मरने की नौबात आ गयी है ” ।
“ ठीक है कल से अपने गिरवी रखे खेतों मे मजूरी के लिए आ जा ,अभी एक सेर सत्तू ले जा और कल से टाइम पर खेतों मे पहुँच जाइयों । समझा ” ।
गमछे में सत्तू बांध के गंगू भारी मन से घर को दौड़ पड़ा ,जितनी तेजी उसकी चाल में भूखे बच्चों तक पहुँचने की थी उतनी ही तेज़ छुरी उसके दिल पर अपने ही खेत में मजदूर हो जाने के दुख की चल रही थी ।
सालों से चले आ रहे मूल ब्याज़ के इस शतरंज में वो अपने सारे खेत हार चुका था और जिसका हिसाब अनपढ़ गंगू के समझ के परे था । अब हालत ये थी की जमींदार, महाजन, बनिए आदि का मूल चुकाना तो फटे दूध की खीर बनाने के समान था, ब्याज़ भी कई महीनों से नहीं गया था ।
घर पहुँच कर बाहर से ही उसने अपनी बीवी को पुकारा -
“रमावती” ले बच्चों को थोड़ा-थोड़ा सत्तू खिला दे । कल से बाबू साहब के खेतों में काम मिल गया है । भगवान चाहेंगे तो रोटी – पानी का जुगाड़ हो जाएगा । अरी जल्दी कर बच्चे भूखे है ।
रमावती भीतर से रोती हुई चिल्लाई “ जरा भीतर आकर देखिये बबुआ बहुत तप रहा है ” ।
गंगू पर तो जैसे गाज़ ही गिर पड़ी । पाँच बेटियों पर बड़ी मन्नतों से एक बेटा हुआ था । तेज़ी से भीतर पहुंचा तो बबुआ को देख तड़प उठा ।
“ जल्दी थोड़ा सत्तू घोल के पीला दे , खाली पेट ज्वर हो आया है । इस पर भी बात ना बनी तो वैध जी को हाथ पाँव जोड़कर बुला लाऊँगा ” ।
सत्तू खा के बबुआ की तबीयत कुछ संभली सी दिखी तो रमावती और गंगू निश्चिंत हो गए की भूख के कारण ज्वर हो गया होगा ।
अपने ही खेत में मजदूरी करते हुए गंगू को महिना हो आया था , रोज की मजदूरी से जैसे तैसे पेट पल रहा था , पर बबुआ की तबीयत गिरती जा रही थी । अक्सर ज्वर आ जाता और कै होने लगती । पैसे की कमी और झोला छाप वैद्यों में अंध श्रद्धा होने के कारण गंगू ने कभी डॉक्टर के बारे में सोंचा तक भी नहीं ।
अक्तूबर की शीतल बयार में धान की कटाई का काम चल रहा था, तभी हरिया दौड़ता हुआ आया “ गंगू संभल भईया तेरे उपर तो आसमान टूट गया है , तेरा बबुआ नहीं रहा । जाने किस पाप की सजा भुगत रहे हो तुम लोग ” ।
बेटे की मौत की खबर सुन कर गंगू खेत में ही अचेत हो गया । होश आया तो सीने पर पत्थर रख कर बाबू साहेब के पास किरिया करम के लिए पैसा मांगने गया । चवन्नी ब्याज पर बाबू साहब ने बहुत नाक रगड़ने पर पचास रुपया दिया ।
बबुआ के जाने के बाद अधमरे रमावती गंगू अपनी पाँच बेटियों के साथ फिर किसी तरह जीवन को ढोने लगे, लेकिन जवान होती बेटियों के ब्याह की चिंता रमावती को खाये जा रही थी । आखिर एक रिश्ता आने पर दोनों ने मिल कर फैसला किया की बड्की को कर्ज़ पानी ले कर निपटा दिया जाये ।
हिम्मत जुटा कर एक बार फिर गंगू बाबू साहब के द्वार कर्ज़ मांगने जा पहुंचा ।
बाबू साहब कठोरता से बोले “ गंगू ज्यादा होशियारी ना दिखा , बबुआ के मरने पर जो पैसा लिया था अभी तक उसका मूल तो छोड़ो बयाज़ भी नहीं दिया और तू चला आया और पैसा मांगने ” ।
“मालिक रहम करो । पाँच बेटियाँ है, सबकी शादी की उम्र हो रही है । आपके पैर धो-धोकर पीऊँगा । दया मालिक ” गंगू पैरों में पड़ गया ।
“ हूँ “ बाबू साहब लपलपाती जीभ से गंगू के करीब आ के बोले -
“ तेरी दूसरे नंबर की बेटी तो बहुत सुंदर है , एक काम कर उसे मेरे पास छोड़ दे । मैं वादा करता हूँ तेरी बाकी की चारों बेटियों का ब्याह बिना कर्ज़ के धूम धाम से करवा दूंगा । बोल क्या बोलता है ?” ।
अपमान से गंगू का खून खौल उठा और वो ज़ोर से चिल्लाया
“ गरीब हूँ बेटियों का दलाल नहीं हूँ ,शादी ना करवा पाया तो कुए मे डूबा दूंगा सबको लेकिन-----------“ गंगू के दाँत भींच गए ------
“मेरे टुकड़ो पर पलने वाला कुता मुझे ही आँख दिखा रहा है , भाग यहाँ से । और कल से खेतों पर नज़र मत आइयो वरना ---देखता हूँ तुझे कोई और भी कैसे काम देता है । मुझसे झगड़ा बहुत महंगा पड़ने वाला है तुझे ....... “बाबू साहब गुस्से में चिल्लाए ।
गुस्से से पगलाया गंगू घर की ओर चल पड़ा । उसने ठान लिया शहर जाएगा, कारखाने में मजदूरी करेगा, क्या हुआ जो किसान नहीं मजदूर बन के मरेगा । कम से कम बेटियों की इज्जत तो बचा पाएगा । नहीं अब और नहीं ।
द्वार पर भीड़ लगी देख गंगू ठिठक गया ।
किसान सभा के कुछ कार्यकर्ता गाँव में घूम-घूमकर किसानों की परेशानियों को सुन रहे थे और उन्हे उचित सुझाव दे रहे थे । इससे पहले भी गंगू कई बार किसान सभा के बारे में सुन चुका था । उसने टोली के मुख्य कार्य कर्ता के चरण छू कर अपने सम्पूर्ण दर्द उनके सम्मुख आँसू मिले शब्दों के साथ रख दिये ।
“उठो गंगू, हम किसान को अपना भगवान मानते हैं, हम उन स्वामी सहजानन्द के अनुयायी है जिन्होने अपना सम्पूर्ण जीवन किसानों के उत्थान के लिए समर्पित किया । हम अपना धर्म , कर्म, प्रेम और श्रद्धा केवल किसानों को ही मानते है । क्रांतिकारी स्वामी जी के पथ पर चलते हुए हम भी किसानों के लिए नई राहें बनाने की कोशिश कर रहे हैं । हम किसानों को कानूनी मदद के साथ साथ शिक्षित भी बनाएँगे, किसानों के लिए बनाई गयी सरकारी सभी योजनाओं को तुम सभी तक पहुंचाएंगे । निश्चिंत रहो, आज से हम सब की नई क्रांति शुरू हो गयी ।
आज ईश्वर ने गंगू की सच्ची दर्द की पुकार सुन ली थी और उसे ये विश्वास हो गया की वो अब एक मजदूर की नहीं किसान की जिंदगी जियेगा और मरेगा ।
गंगू की हिम्मत देख और भी किसान, किसान सभा से जुड़ने लगे और गाँव में हिम्मत की बयार बह उठी ।
संजना अभिषेक तिवारी
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