Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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नारी विमर्श

 

पिछले कुछ दशकों में नारी विमर्श और नारी स्वतन्त्रता समाज का प्रमुख मुद्दा बनकर उभरा है । वैदिक काल से आज तक नारी स्थिति ने कई करवटें ली है । जहां एक ओर प्राचीन काल में नारियों का स्थान इतना ऊंचा था की संतान को उसकी माता के नाम से जाना जाता था । स्त्रियॉं को वर चुनने , शिक्षा प्राप्त करने , नियोग ,किसी भी पूजा आयोजन में हिस्सा लेने , पुनर्विवाह ,एकाकी जीवन जीने आदि का सम्पूर्ण अधिकार था । वहीं दूसरी ओर धीरे –धीरे उत्तर वैदिक काल से लेकर अब तक के समय में स्त्री की स्थिति शोचनीय होती गयी है । कन्या भ्रूण ह्त्या , लैंगिक असमानता का प्रहार , अशिक्षा ,दहेज प्रथा , जबरन विवाह , घरेलू हिंसा ,बलात्कार आदि ने स्त्रियॉं को विरोध करने पर मजबूर कर दिया है ।
1947 में भारत अंग्रेजों से तो आजाद हुआ लेकिन नारी परतंत्र की परतंत्र ही रही । अधिकतर महिलाएं चार दीवारी के भीतर संसार से अनभिज्ञ एक गुमनामी का जीवन जीती रही । घूँघट के भीतर के जख्म जब सड़ने लगे तो उसकी बदबू बहुत तीव्रता से संसार में फैली । हालांकि नारी दशा सुधार के लिए बहुत से तत्व काफी पहले से प्रयासरत थे और कई साहित्यकारों ने भी अपने लेखन द्वारा नारी दुर्दशा पर से पर्दा उठाने का कार्य किया । कानून में भी कई प्रकार की धाराओं के तहत नारी सुरक्षा का उचित प्रबंध करने का प्रयास किया गया है परंतु ये प्रयास केवल कानूनी किताबों तक ही सीमित जान पड़ता है । जिस प्रकार देश में लड़कों की अपेक्षा लड़कियों की संख्या कम होती जा रही है और लड़कियों के साथ सामूहिक व वीभत्स बलात्कारों की संख्या बढ़ती जा रही है उससे कानून की कमजोरियाँ खुल कर सामने आ रही है । दामनी और गुड़िया बलात्कार केस स्त्रियॉं के साथ होने वाले यौन शोषण का खुलकर भंडा फोड़ रहे हैं । आए दिन कचरे के डिब्बों से या खेतों में पाए जाए वाले नवजात बच्चियों के शवों के बारें में चर्चा करना तो आम बात हो गयी है । औरतों को जिंदा जलाना हो या रौड से उसके आंतरिक अंगों को घायल करके अमानवीय स्तर तक जाना , सब कुछ जैसे समाज का आम हिस्सा बनता जा रहा है ।
धर्म के नाम पर साधुओं द्वारा , कैरियर के नाम पर कार्यलायों में अधिकारियों के द्वारा , अस्पतालों में धोखे से डाक्टरों द्वारा और भी कई स्थानों पर नारी की इज्जत को खिलवाड़ बना कर रख दिया गया है । द्रौपदी का चीर हरण तो सिर्फ एक बार हुआ था और उस पर महाभारत रच गया था लेकिन आज स्त्रियॉं का बार बार चीर हरण हो रहा है उसका क्या किया जाए ?
काफी हद तक नारियों की इस दशा की जिम्मेदार स्वयम नारी ही है । कुछ गलत आचरण वाली नारियों के चलते अन्य नारियां नरक भोगने पर मजबूर हो जाती है । इन सब दुर्दशाओं के चलते भी नारियों ने हिम्मत नहीं हारी है । बाड़े से निकालकर खुली हवा में सांस लेने का साहस किया है । अब हालत उतने बुरे तथा वीभत्स भी नहीं रह गए है जितने की कुछ वर्षों पूर्व थे और नारियां अपनी शक्ति द्वारा जल्द ही विजय का परचम फैराएंगी क्योकि एक पुरुष के भीतर केवल पुरुष जीता है परंतु नारी के भीतर नारी और पुरुष दोनों जीते है । नारी जन्मदायनी , प्रकृति , शक्ति , विजयशालनी है और यदि वह ठान ले तो कुछ भी संभव कर सकती है और कर भी रही है ।
नवंबर 2013 के इस महत्वपूर्ण अंक के द्वारा मैं (संजना तिवारी) भी नारी शक्ति और साहस के नाम पुष्पवाटिका समिति के सहयोग द्वारा एक नया अध्याय शुरू करने जा रही हूँ । जिसमें महिला साहित्यकारों , कवियित्रियों , लेखिकाओं के लिए महत्वपूर्ण स्थान रखा जाएगा । साथ ही नारियों से संबन्धित लेख ,कहानियाँ , कविताएं , सच्ची घटनाएँ आदि प्रस्तुत की जाएंगी । प्रथम अंक के लिए ही मेरी महिला और पुरुष मित्रों ने सरहानीय सहयोग दिया है । पुष्पवाटिका समिति की मैं आभारी हूँ और अपने सभी मित्रों के सहयोग की प्रतीक्षारत भी ॥

 

 

संजना तिवारी

 

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