Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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उनतीस दस दो हजार पाँच

 

उन्नत्तीस अक्टूबर की सुहानी शाम ~~~~~~~~~
"मेरा रंग दे sssssssss ऐ ssssss बसंती चोला माए रंग दे ....मेरा रंग दे ....रंग दे ...sssss " वैभव आंखे बन्द किए गाना गाने मे इतना मग्न था की माँ कब से आकर उसे निहार रही थी ,उसे पता ही नहीं चला ।
माँ की तालियों की आवाज से जब उसका ध्यान भंग हुआ तो, उसकी गर्व से चमकती आँखेँ देखकर वो माँ से जा लिपटा ।
"वाह !" कितना सुंदर गाते हो तुम ? और उससे भी सुंदर तुम्हारी देशभक्ति की भावना ! जो मेरे लाल के हर एक शब्द से टपकती है " माँ ने गर्व से कहा ।
"माँ , ये केवल आपके संस्कार है । "
"नहीं बेटा ,ये तुम्हारे पापा का आशीर्वाद है तुमको । जिस पुरुष ने मातृभूमि के सम्मान के लिए अपने प्राण अर्पित किए है ,उसके बेटे में मातृभूमि के प्रति भक्ति जन्मजात ही आ जाती है " ।
"माँ ,तुम खुश हो ना ?" वैभव ने माँ का चेहरा हाथों मे लेते हुए पूछा ।
"मैं आज बहुत-बहुत खुश हूँ वैभव , तुम्हारे पापा का ये सपना था की तुम भी उनकी तरह आर्मी ज्वाइन करो । यदि आज वो होते तो तुम्हारा ये ट्रेनिंग लेटर देखकर गर्व से फूले ना समाते "।
"मैं आपका और पापा का सपना साकार करूंगा माँ , आप विश्वास रखिए मैं जी-तोड़ मेहनत से अपनी ट्रेनिंग पूरी करूंगा और आर्मी अफसर बनकर ही लौटूँगा " वैभव ने जोश से कहा ।
"हाँ मैं जानती हूँ । चलो अब जल्दी से पैकिंग ख़त्म कर लो । सुबह जल्दी ट्रेन पकड़नी है " माँ ने प्यार से कहा ।
"बस माँ , पैकिंग लगभग पूरी हो चुकी है । मैं जरा अपने दोस्त सुधीर के साथ सरोजनी मार्केट जा रहा हूँ । कुछ जरूरी चीजें लेनी है , एक –दो घंटे मे लौट आऊँगा" ।
" ठीक है जल्दी आना " माँ मुस्कुराई ।
" ओके बाय माँ ......................................"
लगभग बीस मिनट में वैभव और सुधीर मार्केट जा पहुंचे । पर आज मार्केट में रोज से कुछ ज्यादा ही भीड़ थी और हल्की ठंडी भी पाँव पसार रही थी । दोनों ने जल्दी-जल्दी अपनी ख़रीदारी ख़त्म की और घर की ओर निकलने लगे , तभी वैभव को कुछ याद आया ।
" सुधीर , माँ को सरोजनी नगर की आलू चाट बहुत पसंद है । एक काम कर तू गाड़ी निकाल मैं तब तक चाट लेकर आता हूँ " ।
" वैभव , यहीं पास में मेरा एक दोस्त रहता है मैं तब तक उससे मिल आता हूँ , तू अपना काम कर ले " सुधीर बोला ।
" ठीक है , तू जा हम आधे घंटे में गाड़ी पार्किंग में मिलते है " कहकर वैभव मार्केट के किनारे बनी फेमस चाट भण्डार की ओर बढ़ गया ।
जल्दी से गर्मागर्म चाट बनवाकर वैभव अभी पैसे दे ही रहा था की ......................................................................
अचानक ....ज़ोर का विस्फोट हुआ । वैभव हवा के तेज़ धक्के से दूर जा गिरा और कुछ क्षणों के लिए अचेत हो गया । चेतना लौटते ही जब उसने आस –पास नज़र दौड़ाई , तो उसका कलेजा दहल गया । भयानक बम विस्फोट हुआ था । जिस दुकान मे वह कुछ पल पहले खड़ा था, आग में झूलस रही थी । चारो ओर खून और मांस के लोथड़े बिखरे पड़े थे । बहुत सी दुकानें उड़ चुकी थी और बहुत सी धू-धू कर जल रही थी । भागम –भाग और चीख पुकार के बीच कुछ लोग जलती दुकानों में फंस गए थे ।
"यदि उन्हे समय रहते ना निकाला गया तो वह भी मौत का ग्रास बन जाएंगे" , ये विचार मन में कौंधते ही वैभव झटके से खड़ा हो गया । उसका बायाँ पैर गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो चुका था लेकिन इस समय वैभव का मन –मस्तिष्क केवल लोगों की मदद के लिए पुकारती चीख़ों को ही महसूस कर पा रहा था । वह तेजी से जलती दुकानों में कूदता रहा और लोगो को निकाल-निकाल कर किनारे पे बिठाता रहा । हर बार के प्रयास में वह स्वयं कहीं न कहीं से गंभीर रूप से घायल होता रहा , परंतु उसने हार ना मानी । दस – बारह लोगो को निकाल चुकने के बाद वैभव अभी थोड़ा संभला ही था की .......एक चीख ने उसका ध्यान अपनी ओर खींचा । एक बच्ची आग में फंसी थी और रोने के अलावा कुछ समझ नहीं पा रही थी ।
" मम्मा ...मम्मा.... मुझे निकालो ....मम्मा ...."
" रुको बेटा बिल्कुल भी हिलना नहीं " कहते हुए वैभव आग में कूद पड़ा ।
दुकान इतनी अधिक जल चुकी थी की निकलने का कोई रास्ता ना सूझता था । कोई मार्ग ना पाकर वैभव बच्ची को पास पड़े शौलों में लपेटकर आग मे से रास्ता बनाकर बाहर निकाल लाया परंतु ...बच्ची तो बच गयी वह स्वयं आग की चपेट में आ गया । 80% जली हालत में मौकाए – वारदात पर पहुंची पुलिस ने उसे मेडिकल होस्पीटल की गाड़ी मे पहुंचाया लेकिन .......
रास्ते में ही इतने लोगो की जान बचाने वाला भारत भूमि का सच्चा , नन्हा और युवा सपूत अपने प्राण न्यौछावर कर चुका था ।
वैभव की मृत्यु उपरांत उसे भारत सरकार की ओर से वीरता पुरस्कार दिया गया , जिसे ग्रहण करने हेतु उसकी माँ गायत्री देवी आयीं । उनके चेहरे पर गर्व और स्वाभिमान की आभा थी । अपने एक-लौते पुत्र को खो देने के गम की जगह उनकी आँखों में पुत्र के लिए सम्मान की भावना तैर रही थी । उन्होने सभी सभाजनों से केवल इतना कहा –
" मैं सभी युवाओं से गुजारिश करूंगी की वो भी वैभव के पथ पर चलें ।जन सेवा ही देश सेवा है । मैं एक देशभक्त पति की पत्नी और एक मातृभूमि के गौरव पुत्र की माँ हूँ । मुझे हर्ष है की मेरे पति और बेटे ने सच्चे अर्थो में अपनी मातृभूमि और देशवासियों की सेवा की और मैं भी अपने प्राण भारत माँ के चरणों मे ही अर्पित करना चाहूंगी । जयहिंद.......जयहिंद ...................जयहिंद .....
सचमुच वैभव ने अपनी वीरता और समझ-बूझ से न केवल बहुत लोगो की जान बचाई , साथ ही वो युवा वर्ग के लिए देशभक्ति और देशप्रेम का अमिट संदेश भी छोड़ गया ॥

 

 

संजना अभिषेक तिवारी

 

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