पत्रांक - 45/12
दिनांक : 20-01-2012 श्री संजय कुमार अविनाश
द्वारा-श्री आनन्दी प्रसाद गुप्ता
ग्राम - बंशीपुर मेदनी चौकी
पत्रालय - अमरपुर
जिला - लखीसराय
बिहार , पिन - 811106
प्रिय संजय ,
सदैव खुश रहो । माँ सरस्वती की आप पर कृपा बनी रहे । कुछ दिन पूर्व आपके
द्वारा प्रेषित पुस्तक 'अंतहीन सड़क' प्राप्त हुई थी और आपसे दूरभाष पर
चर्चा भी हुई थी ।
"अंतहीन सड़क" इसे आपके अनुसार लम्बी कहानी कहूँ या उपन्यास , कोई फर्क
नहीँ पड़ता । आपने एक ज्वलंत मुद्दे पर अपने विचारोँ को ताने-बाने मेँ
पिरोकर 'अंतहीन सड़क' के माध्यम से प्रस्तुत किया । वेश्या-समाज का कोढ़ या
सभ्य समाज का रक्षक ? वेश्या-बनने के कारण-निवारण , समाज का दृष्टिकोण
आदि सभी सभी सबालोँ का तलाशने का काम किया है आपने अपने उपन्यास मेँ । इस
कहानी का कथानक सशक्त है । आपका प्रथम प्रयास होने के कारण तो और भी
महत्वपूर्ण है । मगर भाषा के चयन मेँ आपको ज्यादा ध्यान देना होगा ।
हिन्दी का अर्थ बिहार के किसी प्रान्त विशेष तक सीमित होना नहीँ है , यह
अन्तर्राष्ट्रीय भाषा है । जब कोई पुस्तक छप कर आती है तो वह कहाँ तक
जायेगी , कोई नहीँ जानता । उस स्थिति मेँ भाषा क्षेत्रबाद की बोली से अलग
बन जाती है ।
आपने अनेक जगह आंकड़ोँ का प्रयोग किया , दिव्या के द्वारा दार्शनिक शैली
मेँ वार्तालाप , पात्रोँ की अधिकता , सब पात्रोँ का वेश्यावृत्ति पर गहन
अध्ययन---सभी बातोँ से यह शोधग्रन्थ की तरफ बढता व भटकता रहा है । आपकी
आगामी कृति "परायी नारी" को प्रकाशन से पूर्व अपने आसपास किसी वरिष्ठ
साथी से अवश्य मार्गदर्शन लेँ ।
यह तो सच है कि गीत , कविता , कहानी , नाटक आदि सबसे जटिल विधा है
उपन्यास लेखन । जिसमेँ आपने सार्थक प्रयास किए हैँ । पहली कृति की आलोचना
, समालोचना के बाद , दूसरी मेँ संशोधन करना । सफलता तुम्हारे कदम चूमेगी
।
शुभकामनाऐँ ।
डॉ. अ. कीर्तिवर्द्धन
विद्दालक्ष्मी निकेतन , 53, महालक्ष्मी एनक्लेव , जानसठ रोड , मुजफ्फरनगर
251001 उत्तर प्रदेश ।
प्रकाशक - मीनाक्षी प्रकाशन , एम. बी. 32/2बी , गली नं0 2. शकरपुर , दिल्ली 110092
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