मानवीय जीवन में मनुष्य का आत्म-सम्मान ही बहुमूल्य है । इसकी बजह समाज ,
संस्कृति और देश मेँ उसका सम्मान होता है । आत्म-सम्मान उसी स्थिति मेँ
उच्च होता है जब उसका चरित्र साफ-सुथरा और उज्ज्वल हो । नैतिक मूल्य
धनाढ़्य हो । चोरी , डकैती , बलात्कार , व्यभिचार , भ्रष्टाचार , हत्या ,
अतिवाद , आतंकवाद जैसे घृणित कार्योँ से अपने को सुरक्षित बचाये रखे ।
उसमेँ आस्था विश्वास गहरा हो । सबसे आत्मीय संबंध हो । ईमानदारी ,
खुद्दारी हो । देश , समाज , संस्कृति के प्रति समर्पण भाव हो और उनके
विकास के लिए अपना जीवन समर्पित कर दे ।
बिना शांति , सद्भावना , त्याग और जनसेवा के , मनुष्य अपने देश मेँ
उज्ज्वल और ख्याति तथा प्रभाव स्थापित नहीँ कर सकता है । इसलिए भी कि
समाज मेँ मनुष्य से अधिक मूल्यवान कुछ नहीँ । मनुष्य के लिए देश समाज
संस्कृति सर्वाधिक महत्वपूर्ण है । इनके बिना इसका अस्तित्व ही नहीँ ।
इसलिए जिस देश मेँ रहता है उसका वातावरण शुद्ध हो । परन्तु व्यवहारिक
दृष्टि से देखा जाय तो अपने लाभ , अपने हित , अपनी भूख के लिए मनुष्य
अपना नैतिक चारित्रिक मूल्योँ की परवाह नहीँ करता । इसकी तमाम सीमाओँ को
तोड़ देता है । इससे उसे अपयश , बेइज्जती का घृणित , उपेक्षित , तिरस्कृत
जीवन जीना पड़ता है ।
' अंतहीन सड़क ' संजय कुमार ' अविनाश ' का ऐसा ही महत्वपूर्ण उपन्यास है
जो सामाजिक समुद्र की गंदगी को साफ करने के लिए रिफाइनरी का काम करता है
। वह गंदे बदबूदार हवा की शुद्धता की अपेक्षा करता है ।
यद्दपि संजय कुमार ' अविनाश ' अच्छी तरह जानते हैँ कि - चरित्रहीनता की
गंदी सड़क अंतहीन है जिसका हर आदमी अपनी तरह अंतहीन दौड़ दौड़ता ही चला जाता
है और न जाने कहाँ खो जाता है ।
' वेश्यावृति ' को विषय वस्तु बनाकर लिखा संजय कुमार 'अविनाश' का उपन्यास
'अंतहीन सड़क' ऐसी सड़क है जिसका कोई अंत नहीँ । सतयुग , त्रेतायुग ,
द्वापरयुग , एवं कलयुग मेँ वेश्यावृति होती रही है । राजाओँ के दरबारोँ
मेँ , देवताओँ के दरबारोँ मेँ वेश्याएं थीँ जिनसे वे इच्छानुरुप काम लेते
थे । अप्सराएं इस तरह के कार्य करती थीँ । विषकन्याएं भी । इनसे जासूसी
का काम भी लिया जाता रहा है । प्रेम के जाल मेँ फंसाकर रहस्योँ की खोज
करना इनका काम रहा है ।
अब स्वतंत्र भारत मेँ भी लगभग सभी शहरोँ मेँ वेश्यावृति है । कहीँ
रजिस्टर्ड , कहीँ बिना घोषित । सेक्स वर्कर अपने जीवनयापन के लिए यह
कार्य करती हैँ ।
कई बार प्रेमी प्रेमिका के साथ छलकपट कर , इन्हेँ वेश्यालय मेँ बेच देते
हैँ । सुन्दर औरतेँ कमाई का साधन नहीँ होने से सेक्स की कमाई से जीवनयापन
करती हैँ । कार्यालयोँ मेँ नियुक्ति , पदोन्नति का लाभ लेने के लिए
लड़कियोँ/औरतोँ को शरीर समर्पण करना पड़ता है ।
आजकल कॉलेज जीवन या स्कुली जीवन मेँ ब्वायफ्रेँड , गर्लफ्रेँड की
संस्कृति से हुए धोखोँ के बाद समाज से बहिष्कृत लड़कियाँ वेश्या का कार्य
करने के लिए मजबूर हो जाती हैँ । विधवाएँ भी कई बार वेश्या बन जाती हैँ ।
आर्थिक कारण इसके लिए प्रमुख है । 'अंतहीन सड़क' उपन्यास मेँ संजय कुमार
'अविनाश' ने वेश्या के जीवन पर गहरे से छानबीन की है । इसलिए उनका यह
उपन्यास शोधपरक उपन्यास है । इसमेँ अविनाश , दिव्या {फरहद} , परवीन ,
असफाक , योगेन्द्र राय , विवेक , प्रभा , शुभम , सारिका , कशिश , आयशा ,
शमीम जैसे सार्थक एवं समर्थ पात्रोँ के माध्यम से वेश्यालय की कार्यविधि
को बहुत साफ रुप से खुलासा किया गया है । वेश्याएं रात मेँ सुहागन और
दुल्हन की तरह सजती हैँ और अपन शरीर सौँपती हैँ । दिन मेँ वे विधवा
स्त्री की तरह रहती हैँ । हर शाम एक रंगीन सपना लेकर आती है जिसमेँ बड़े -
बड़े पूंजीपति लोग अपनी इज्जत को डुबाते और रंगीन सपनोँ मेँ रंगते हैँ ।
इस तरह इज्जतदार लोग गंदगी मेँ डूबने मेँ अपना गौरव समझते हैँ । वे यह
नहीँ सोचते कि इन्हेँ इज्जतदार जीवन जीना है । अपने चरित्र की सुरक्षा
करनी है । वे अपनी ही बहू-बेटियोँ की इज्जत सुरक्षित नहीँ रहने देते ।
वेश्यालय पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता है । कानूनी या गैरकानूनी स्तर पर । समाज ऐसी
गंदी जगह खुद बनाता है । यह उपन्यास एक सामाजिक कैँसर की तरह है जिसका
कोई इलाज आजतक नहीँ खोजा जा सका है । विदेशोँ मेँ तो वेश्यालय खुलेआम
बहुत ज्यादा चल रहे हैँ । भारत मेँ भी अब इसकी नकल हो रही है । इसीलिए अब
भारत मेँ वेश्यालयोँ की संख्या बढ़ रही है । औरतेँ भौतिकवादी सुविधाओँ की
उपलब्धि के लिए सेक्स वर्कर का कार्य करने से नहीँ सकुचातीँ , बल्कि अपने
को गौरवान्वित समझती हैँ । यह अंतहीन सड़क अच्छी नहीँ । फिर भी समाज का हर
आदमी बिना सोच-समझे इसपर दौड़ने को आतुर है । इस सुन्दर कृति के लिए युवा
कथाकार अविनाश को शतशः बधाईयाँ ।
पुस्तक -अंतहीन सड़क
समीक्षक - राधेलाल बिजधावने
ई-8/73 , भरत नगर {शाहपुरा} , अरेरा कॉलोनी भोपाल 462039
मो. 98266559989
लेखक - संजय कुमार 'अविनाश'
लखीसराय , बिहार
मो. 9570544102
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