कृति - " आप भी सफल हो सकते हैँ - व्यक्तित्व का सोँधी सफर "
लेखक - रवीन्द्र नाथ प्रसाद सिँह भूमि-सुधार उपसमाहर्ता , लखीसराय ।
समीक्षक - संजय कुमार अविनाश
"आप भी सफल हो सकते हैँ" नामक कृति बिहार प्रशासनिक सेवा मेँ कार्यरत
प्रांत के लखीसराय जनपद मेँ पदस्थापित भूमि सुधार उपसमाहर्ता रवीन्द्र
नाथ प्रसाद सिँह द्वारा सराहनीय रचना है । प्रकाशन वर्ष 2005ई. एवं
द्वितीय संस्करण वर्ष 2012 , कुमार प्रकाशन , खाजपुरा , पटना 800014 के
द्वारा प्रकाशित हुई है । उन्होँने अपनी कृति को अनथक प्रयास से संवारने
का अतुलनीय प्रयास किया । आश्चर्य होता है की लेखक ने प्रशासनिक सेवारत
होता हुए , किस तरह समय को चुराने का सत्साहस किया और गंगा की अविरल धारा
को प्रवाहित करते हुए , कुंठित मानव की दिशा और दशा का अवलोकन करते हुए ,
सत्यमार्ग की ओर निर्भिक सफर का खजाना बताने का हर संभव अपनी रचना के
माध्यम से समर्पित किया ।
सच , कहा गया है - अपने वो नहीँ होते जो रोने पे आते हैँ ,
अपने वो होते हैँ जो रोने नहीँ देते ।
लेखक ने इस उध्दरण को चरितार्थ करते हुए नये सपने लेकर विद्दमान हैँ ।
जिन्दगी की हर एक पहलू को सजाने का जो सार्थक पहल किया , वो परिपक्व
लेखनी के पुजारी ही कर सकने मेँ सफल हुआ करते हैँ ।
परंतु , इन्होँने एक मिशाल कायम करते हुए जीवन की डोर को पतनशील न बनाकर
प्रयत्नशील बनाने का कार्य किया । इस रचना के माध्यम से जितना भी प्रशंसा
की जाए वो भगवान के प्रसाद के बड़ाबड़ है ।
उन्होँने अपनी रचना मेँ लक्ष्य , सफलता , असफलता , व्यक्तित्व , अनुशासन
एवं नजरिया और उसके प्रभाव जैसे विश्लेषणोँ पर विस्तृत रुप से प्रकाश
डाले हैँ । जिससे मनुष्य के द्वारा टेढ़े-मेढ़े , भटकाव , अंधविश्वास जैसे
भ्रामक सोच से उबाड़ा जा सके ।
देखा जाए तो पुस्तक की 240 पृष्ठीय हर तरह से व्यक्तित्व की अपनी क्षमता
संवारने व निखारने मेँ अग्रणी है । कोई भी पृष्ठ ऐसा नहीँ , जो मानवीय
गुणोँ से ओत-प्रोत न हो । उन्होँने "कार्य योजना पर कमी " शीर्षक माध्यम
से प्रकाश डालते हुए लिखे हैँ - "आगरा का ताजमहल दो बार बना है " जो
पाठकोँ को दिग्भ्रमित होने के लिए विवश कर देती है । किँतु , उनकी सोच
धनी है , उन्होँने अगली पंक्ति मेँ बताया कि किसी भी कार्य तब ही सफल हो
सकती है जब कार्ययोजना सारगर्भित हो । किसी भी कार्य को करने से पहले
उसकी सकारात्मक व नकारात्मक दृष्टिकोण को गहनता से परख लिया जाए ।
आनन-फाऩन मेँ कोई भी कार्य सफल होने से खुद कतराता है । अर्थात ताजमहल
सबसे पहले शाहजहाँ के दिमाग , मन-मस्तष्कि मेँ तैयार हुआ । पुनः निरंतरता
जारी रखते हुए जमीँ पर आया जो दुनिया के सात आश्चर्य मेँ एक बना । (पृष्ठ
संख्या 15)
इसी तरह पृष्ठ संख्या 20पर उदाहरणार्थ कर भटकाव , भ्रम , संदेह ,
दोषारोपण का संदेश अपने रुप मेँ दिए हैँ - "यदि मनुष्य के अंदर दृढ़ इच्छा
शक्ति एवं आत्म विश्वास हो तो संसाधनोँ की कमी बाधक नहीँ होती ।"
सच मेँ लेखक ने अधिकांश मानवोँ की दुर्बलता , इच्छा शक्ति की कमी ही मानी
है । इच्छा शक्ति के कमी के बजह से मनुष्य , मनुष्य नहीँ रह पाता है ।
स्वयं को निःसहाय मान जीवन व्यर्थ मेँ गंवाने को विवश हो जाता है । दृढ़
इच्छा शक्ति को बनाकर रखने के लिए अनेकानेक उदाहरण स्वरुप छोटी-छोटी
लोकोक्ति , लघुकथा सामने रखकर प्रेरणास्रोत का काम किया ।
जीवन के विस्तृत पहलू पर ध्यान आकर्षित करते हुए लिखा - "आप किसी संपदा
के मालिक नहीँ ; प्रबंधक होते हैँ । जब तक आपका प्रबंधन सही होगा , आप उस
संपत्ति के प्रबंधक बने रहेँगे । जैसे ही प्रबंधन अनुचित व अनैतिक होगा ,
आपके हाथोँ से संपदा निकलकर कुशल प्रबंधक के हाथोँ मेँ चली जायेगी ।" अतः
लक्ष्य प्राप्ति के बाद जीवन का वास्तविक उद्देश्य व्यक्तिगत उपलब्धि की
पहचान , राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करना तथा दिन
प्रतिदिन अपने व्यक्तित्व मेँ निखार लाकर प्राप्त उपलब्धि की सार्थकता को
जन कल्याणार्थ बनाना है । संकीर्ण मानसिकता से निकलकर , खुलापन तथा
जिन्दगी मेँ औचित्य को साकार करने हेतु जीवन मूल्योँ पर खड़ा उतरने का
संदेश दिए हैँ । जो , एक सच्ची मानसिकता को पहचानने मेँ , सार्थक पहल
करने की तत्पड़ता से वशीभूत है । (पृष्ठ संख्या 45)
रचनाकार स्वयं अपने व्यक्तित्व को संवारकर एक उदाहरण सामने ला दिए ,
वरिष्ठपद् पर कार्यरत रहते हुए भी रचनात्मक कार्य नरंतर जारी है ।
सृजनशीलता की ओर निर्भिक सफर तय करते जा रहे हैँ । अपनी रचना मेँ मानसिक
रुप से कमजोरियोँ को सामने लाकर भटके हुए युवाओँ एवं खुद को लाचार समझने
वाले , निरर्थक सोच को हृदय मेँ बसानेवाले , ईश्वर का दोष मानकर , भाग्य
की बात कह तबाही की मंजर मेँ पलने वाले , मानसिक तौर से ग्रसित जीवन बसर
करने वाले लोगोँ पर गहरा प्रभाव डालते हुए आगे आने को विवश करते हैँ ।
सच मेँ लक्ष्य को पाने के लिए किसी भी व्यक्ति का व्यक्तित्व उसमेँ मृदुल व्यवहार ,
सोम्य विचार , शालीनता , सहनशीलता , विन्रमता एवं ईमानदारी जैसे गुणोँ का
समावेश होना नितांत आवश्यकता बताया है ।
स्वयं उर्जस्वी , विन्रम स्वाभाव , सहनशीलता धर्मी होते हुए आम-जनोँ भी
अपने रास्ते पर चलने को उत्सुकता प्रदान किए ।
विश्वास है कि इस अमूल्य कृति के माध्यम से जन-जन तक उनकी उल्लेखनीय सोच
, भटके हुए मन को सही रास्ते पर चलकर मीनार खड़ा करने मेँ अव्वलता हासिल
करे ।
थोड़ा रचना मेँ अवरुध्दता आई है । लेखक ने अनेक जगह लिखा - "शायद आप नहीँ
जानते होँगे" जो उनके सोच के अनुसार अहं पैदा करता है । कई जगह पाठकोँ को
अस्वाभिक शब्दोँ का सामना करना पड़ता है ।
जहाँ तक प्रशंसा की बात की जाए तो लेखक वाकई सफल व्यक्तित्व के धनी हैँ ।
और अपनी सफलता का उद्देश्य जन-कल्याणार्थ के लिए समर्पित किए हुए हैँ ।
जिसका उदाहरण सृजनशील होना है ।
सच्चे साहित्य की परिभाषा सीमित नहीँ रखा जाए तो आने वाले कल के लिए
प्रकाशमान रहेगा । आप भी सफल हो सकते हैँ के माध्यम से टेढ़े-मेढ़े रास्ते
के बारेँ मेँ बताकर , मनुष्य मेँ उच्च से उच्चत्तम जीवन जीने की तलाश
करती है ।
इतनी सुन्दर रचना के लिए लेखक रवीन्द्रनाथ प्रसाद सिँह जी का आभार व्यक्त
करते हुए , उनकी विचारणीय लेखनी को शतशः नमन करते हुए धन्यवाद ज्ञापन
करता हूँ । रचना संग्रहणीय व पठनीय है । इस हेतु कुशल कामना करता हूँ कि
विद्वानोँ के हाथ स्पर्श कर उचित उचित मूल्यांकन हो और लेखक अनवरत
साहित्य के सेवा मेँ जागृत दिखे ।
संजय कुमार "अविनाश"
युवा कथाकार लखीसराय बिहार 9570544102
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