क्योँ ढ़ा रहे हो इंतकाम किस लाचारी की है पहचान ?
तन काटा , मन काटा , काट रहे हो प्राण ,
रुक वरना मिट जायेगा पहचान ।
मेरी निर्मल छाया मेँ आसमा उतर आयेगा ,
बादलोँ का झुंड लहरायेगा ,
तब बच पायेगा तुम्हारा जान ।
सड़क बनाया मुझे रुलाया , नदी की धार भी तड़पाया , सोच तेरी काया कहाँ
खिलेगी शौर्य की ताप कहाँ रुकेगी ?
हर जान तुम्हेँ लेने वाला , मैँ निर्जीव सा देने वाला ,
मीठा , तीखा , कड़वा हर स्वाद का मैँ रखवाला ,
मुझे मत काट मतवाला ।
मेरी चीख सुन न पायेगा , हरा- भरा मिट जायेगा , हूँ मैँ तुम्हारी शान
पर्यावरण है मेरा नाम ।
पहाड़ोँ की शान बनी हूँ ,
धरती की वरदान खड़ी हूँ ,
किस निर्लज के बात अड़े हो
हाथ लोहे का कटार लिए हो ।
मेरे पीछे कई खड़े हैँ ,
बदले की भावना मेँ पड़े हैँ ।
देख पीछे देख , मुड़कर देख ,
बिना कटार बिना हथियार ,
प्रदुषण बन कर रहा इंतजार ।
देख उपर देख , आंख उठा ,
बादलोँ भी चल दिया उस पार ।
उसे न रोक पायेगा , न हथियार दिखायेगा ,
जब तक रोक न पायेगा , वह तुम्हेँ तड़पायेगा ।
क्योँ ढ़ा रहे हो इंतकाम , किस लाचारी की है पहचान ?
संजय कुमार अविनाश
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