लौट चलो आजादी के रंग ,
मिटा डालो गुलामी के जंग,
जो मानव तन
का परवाह नहीं करते ,
बंजर बनाने
वालों का हिसाब नहीं रखते ,
किसानों को
देश का लाल नहीं कहते !
लौट चलो आजादी के रंग ,
मिटा डालो गुलामी के जंग,
संविधान
लोकतंत्र का ग्रन्थ है ,
संसद भवन
का मूल मंत्र है ,
हर सफ़ेद
का घिनौना तंत्र है !
भ्रष्ट
पुजारी बैठ गया मंदिर में ,
आम जनों को
छोड़ दिया क्रंदन में !
लौट चलो आजादी के रंग ,
मिटा डालो गुलामी के जंग ,
धूमिल धूसर
उड़ा रहा होली के रंग ,
बैठ सम्मान
बढ़ा रहा नेताओं के संग !
अरे ! वो
तो घिनौना काल है ,
तुम तो
माँ भारत का लाल है !
एक
सृष्टि गढ़ने/ रचने वाला ,
दूसरा अंध बन मिटाने वाला !
लौट चलो आजादी के रंग ,
मिटा डालो गुलामी के जंग,
कब तक जन गन गाते रहोगे ,
माँ की आँचल लुटाते रहोगे !
हर कोई
राजनीती जमात बढ़ाएगा ,
जाग, उठ,
संभल, तुम्ही मिटाएगा !
तुम्हारी माँ फफक रही है
,बहने गली में सिसक रही है !
लौट चलो आजादी के रंग ,
मिटा डालो गुलामी के जंग ,
अहिंसा अहिंसा जाप करते रहोगे
,हिंसा पल पल डंसता रहेगा !
छोड़ हिंसा अहिंसा की बात ,मान
लो दुश्मनों को मिटाने का शाप,
दुश्मन तुम्हारे घर
में है , साँपों का बसेरा मान में है ,
जाग , उठ , संभल
नौजवानों , तेरी आजादी कफ़न में है ,
लौट चलो आजादी के रंग ,
मिटा डालो गुलामी के जंग !
संजय कुमार
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